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(समर्पण समन)
विश्ववन्द, जगदुपकारी, भव्य जीवों के हृदय सम्राट, संतशिरोमणि, अध्यात्म रसासिक्त, महान् दार्शनिक, तत्वानुवेषी, दिगम्बराचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज के सुयोग्य शिष्य, श्रमण संस्कृति के उन्नायक, साधना पथ के पथिक, तीर्थ क्षेत्रों के जीर्णोद्धारक, सतपथ प्रशस्ता, जैन संस्कृति के परम संरक्षक, प्रखर मेधा सम्पन्न, गुरु आज्ञा में पूर्ण निष्ठावान, तपोमूर्ति, आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के सकल वाङ्मय को संगोष्ठियों व शोधात्मक कार्यों द्वारा जन-जन में समाहित करने वाले आगम प्रभावक, नैतिक व चारित्रिक मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने वाले, ओजस्वी वक्ता, प्रवचन प्रवीण, आध्यात्मिक संत 108 मुनिश्री सुधासागरजी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद के फलस्वरूप यह कृति प्रस्तुत हो । सकी है। ___माँ भारती के तपःपूत परमवन्दीय पूज्य ५ मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के करकमलों में विनम्र प्रणतिपूर्वक यह कृति सादर समर्पित
श्रद्धान्विता डॉ. कामिनी जैन "चैतन्य"
जयपुर