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(xiii) शब्द संकलन शब्द मीमांसा - आचार्य श्री ज्ञानसागर जी एक अच्छे शब्दशास्त्री और व्याकरणवेत्ता भी थे। यही कारण है कि उन्होंने नये-नये शब्दों का सृजन कर अपने काव्यों में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त अनेक भाषाओं (हिन्दी/उर्दू / फारसी/अंग्रेजी) के प्रचलित-अप्रचलित देशज तथा तद्भव आदि शब्दों का प्रयोग भी यथास्थान अपनी रचनाओं में किया है। समसामयिक प्रचलित शब्दों/ समस्याओं/ घटनाओं/राजनेताओं/महापुरूषों/प्राचीन आचार्यों/सुप्रसिद्ध प्राचीन रचनाओं आदि का उल्लेख भी अपनी कृतियों में जहाँ-तहाँ प्रसंगानुसार किया है। अनेक शब्दों के अर्थ भी व्यूत्पत्तिपूर्वक प्रस्तुत किये हैं। लोक प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भी इनके काव्यों में यत्र तत्र अवलोकनीय है। वीरोदय महाकाव्यगत ऐसे कतिपयय शब्दों, लोकाक्तियों आदि का संकलन कर शोध-प्रबन्ध के अन्त में एक परिशिष्ट में दिया गया
1. रोटिकां मोटयितुं हि शिक्षते/ श्मशृं स्वकीयां बलयन् /न कोऽपि कस्यापि
वभूव वश्यः । 2. तेलफुलेलादि/मखमलोत्तूलशयनात्/झलंझलावशीभूतः/
गल्लकफुल्लका/तूलकुथो। 3. लोपी/निगले/गलालंकरणाय/ नौका-मौका/ नेक/वार्दल/
पुच्छ/खट्टिक/ बेरदलम्। 4. सत्याग्रह / असहयोग/ वहिष्कार/ महात्मा/स्वराज्यप्राप्तये। 5. देवागम/आप्तमीमांसा। 6. समन्तभद्र/पूज्यपाद/प्रभाचन्द्र/अकलंक/ नेमिचन्द्र/
शुभचन्द्र/ चामुण्डराय/ नागार्जुन/पाण्डव/ भीष्मपितामह / सुदामा । 7. आ. श्री के समग्र साहित्य से ऐसे शब्दों का संकलन/ मीमांसा/व्याख्या
आदि भी अन्वेषणीय है जो किसी व्याकरणवेत्ता विद्वान द्वारा पृथक पे अनुसन्धेय है।