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(xii) तथा अनेक कविता-कहानियों को लिखकर हिन्दी साहित्य के भण्डार को भरा है। इसके साथ ही अब इस 20वीं सदी के कविकुलगुरू अनेक काव्यों के प्रणेता स्वनामधन्य पं. श्री भूरामल जी शास्त्री (आ. श्री ज्ञानसागर जी) द्वारा रचित इस वीरोदय महाकाव्य पर यह शोध प्रबन्ध लिखकर "डाक्टरेट" की उपाधि पायी है। निःसन्देह श्रीमती कामिनी जैन साहित्य-सृजन एवं शोध-खोज की गहरी रूचि सम्पन्न मेधावी महिला हैं। भविष्य में साहित्य जगत को इनसे बहुत आशाएँ-अपेक्षाएँ हैं। इनके उज्जवल भविष्य की हम कामना करते हैं।
इनका यह शोध-प्रबन्ध 6 अध्यायों के 23 परिच्छेदों में विभक्त है। पहले-दूसरें में पांच-पांच, तीसरे में चार और चौथे, पांचवें तथा छठे अ यायों में तीन-तीन परिच्छेद हैं, जिनमें वर्णित विषय को लेखिका ने ग्रन्थारम्भ में प्राक्कथन में तथा ग्रान्थान्त के उपसंहार में दे दिया है। इसकी सूची भी प्रारम्भ में दी गई है। अतः यहां इसका उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
इस शोध प्रबन्ध के अनुशीलन एवं अन्तःपरीक्षण से ज्ञात होता है कि इसके लेखन में विदुषी लेखिका ने अथक परिश्रम किया है। आ. श्री ज्ञानसागर जी के समग्र साहित्य के गहन अनुशीलन के साथ-साथ शताधिक अन्यान्य सन्दर्भ-ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं और कोश-ग्रन्थों को देखा-परखा-समझा है, अध्ययन-मनन किया है। ग्रन्थान्त में सन्दर्भ ग्रन्थों पत्र-पत्रिकाओं एवं कोश-ग्रन्थों की सूची दी गई है। इस शोध प्रबन्ध के सन्दर्भो का सत्यापन कर संशोधन कर दिया गया है तथापि अ याय 5 के कुछेक सन्दर्भो (अ. 5 परिच्छेद । सन्दर्भ- 3, 8, 13) का सत्यापन अभी भी अपेक्षित है।
लेखिका के मन्तव्य एवं विचारों को सुरक्षित रखते हुये कुछ स्थानों पर विषय के समायोजन, भाषा के परिमार्जन तथा पुनरावृत्त कतिपय अंशों को हटाने से एवं लीडिंग कम करने, शब्द का आकार छोटा करने से मूल काव्यप्रबन्ध के आकार में लघुता आयी है। कहीं-कहीं सन्दर्भानुसार कुछ अंश जोड़े भी गये हैं।