SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरोदय का स्वरूप 149 1. अहिंसामहाव्रत - कषाय युक्त मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को "प्रमत्त योग" कहते हैं, प्रमत्त योग से दश प्राणों का वियोग करना हिंसा है - ऐसी हिंसा से विरत होना, सब प्राणियों पर पूर्ण दया करना अहिंसा महाव्रत हैं। जैनधर्मामृत में अहिंसा महाव्रत का लक्षण इस प्रकार कहा है जन्मकाय - कुलाक्षाद्यैर्ज्ञात्वा सत्वततिं श्रुतेः। त्यागस्त्रिशुद्धया हिंसादेः स्थानादौ स्यादहिंसनम्।। 8||14 _ -सर्वार्थ सिद्धि.7/201 जन्म, काय, कुल और इन्द्रिय आदि के द्वारा शास्त्रानुसार जीवों के समुदाय को जानकर उनकी हिंसा आदि का मन, वचन ओर काय से सर्वथा त्याग करना अहिंसा महाव्रत है। द्रव्य तथा भाव हिंसा का स्थूल व सूक्ष्मरूप से त्याग कर षट्काय के जीवों की रक्षा करना अहिंसा महाव्रत है। 2. सत्य महाव्रत - प्राणियों को जिससे पीड़ा हो ऐसा भाषण, चाहे विद्यमान पदार्थ विषयक हो अथवा न हो उसका त्याग करना सत्य महाव्रत है। जैनधर्मामृत में सत्य महाव्रत के विषय में लिखा है- कि रागद्वेषादि से उत्पन्न असत्य को, पर के अहितकर वचन को और तत्वों का अन्यथा कथन करने वाले वचन को छोड़कर यथार्थ वचन कहना सत्य महाव्रत है। रागद्वेषादिजासत्यमुत्सृज्यान्याहितं वचः। सत्यं तत्त्वान्यथोक्तं च वचनं सत्यमुत्तमम् ।। 4।। -पुरूषार्थ सि.उ. 118। 3. अचौर्य महाव्रत बह्वल्पं का परद्रव्यं ग्रामादौ पतितादिकम् । अदत्तं यत्तदादानं वर्जनं स्तेयवर्जनम् ।। 5 ।। -उपासका अ.श्लोक 405 |
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy