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________________ 150 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन बिना दिये हुए किसी भी वस्तु का ग्रहण न करना अचौर्य महाव्रत है। बिना दिये नगर, ग्राम, पर्वत पर गिरे, रखे या भूले हुए बहुत या अल्प परद्रव्य को ग्रहण नहीं करना अचौर्य महाव्रत कहलाता है। 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत रागलोककथात्यागः सर्वस्त्रीस्थापनादिषु । माताऽनुजा तनूजेति मत्या ब्रह्मव्रतं मतम् ।। 6 ।। ब्रह्मचर्य महाव्रत से तात्पर्य है मनुष्य, तिर्यञ्च, देवगति सम्बन्धी सभी प्रकार की स्त्रियों में काष्ठ, पुस्तक भित्ति आदि पर अंकित या स्थापित स्त्री-चित्रों में "यह माता है, यह बहिन है, यह पुत्री है"- इस प्रकार अवस्था के अनुसार कल्पना करके उनमें राग-भाव करने का, देखने का और उनकी कथाओं के करने का त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत है। 5. अपरिग्रह महाव्रत – बाह्य अभ्यंतर परिग्रहों का तथा मुनियों के अयोग्य समस्त वस्तुओं का त्याग करना अपरिग्रह महाव्रत है। चेतनेतर-बाह्यान्तरंग संग-विवर्जनम् । ज्ञान-संयमसंगो वा निर्भमत्वमसंगता।।7।। चेतन और अचेतन तथा बाह्य व अन्तरंग सर्वप्रकार के परिग्रह को छोड़ देना और निर्ममत्व-भाव को अंगीकार करना अथवा ज्ञान व संयम का ही संगम करना अपरिग्रह महाव्रत है। पंच समितियां – प्रमाद-त्याग की हेतुभूत, पाँच समितियों का मुनिराज पालन करते हैं। 1. ईर्यासमिति - दिन में सूर्यालोक के रहने पर चार हाथ आगे भूमि देखकर गमन करना ईर्यासमिति कहलाती है। 2. भाषासमिति – हित, मित, प्रिय वचन बोलना ही भाषासमिति है। 3. एषणासमिति - छियालीस दोषों को टालकर श्रावक के द्वारा श्रद्धा और भक्ति पूर्वक दिये गये निर्दोष आहार को दिन में एक बार ग्रहण करना एषणासमिति कहलाती है।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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