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________________ (x) प्रस्तुत शोघ-प्रबन्ध का आधार "वीरोदय' महाकाव्य है। यह 22 सर्गों में निबद्ध, शान्त-श्रृंगार-करूणरसों से भरपूर, रस-भाव-गुणालंकारों से विभूषित, अनुप्रास एवं तुकान्त विन्यास से युक्त, सुन्दर आकर्षक ऋतुवर्णनों से मनोहारी, ग्राम-नगर-बाजार-मार्ग-कोट आदि के वैभवपूर्ण वर्णन से युक्त, प्रौढ पाण्डित्य-सम्पन्न एक सफल दुष्प्राप्य महाकाव्य है, जो श्रमणों-श्रमणोपासकों की दिनचर्या का दिग्दर्शन कराते हुए उनके कर्तव्याकर्तव्य का बोध कराता है, सदाचार, सद्विचार, सद्व्यवहार के साथ-साथ धर्म, नैतिकता और राजनीति की भी शिक्षा देता है। जीवन की आध्यात्मिक उन्नति/प्रवृत्ति की भी प्रेरणा पाठकों को देता है। भले ही यह महाकाव्य धर्मशर्माम्युदय, चन्द्रप्रभचरित, मुनिसुव्रत-काव्य तथा नैषधीयचरित काव्यों से प्रभावित हो तथापि इसमें अपनी मौलिकता तथा वैशिष्टय है। इसमें कवि की अपनी अनूठी कल्पनाएँ, हृदयालादकारी उत्प्रेक्षाएँ, प्रभावी बिम्ब-प्रतिबिम्ब और पाण्डित्यपूर्ण रस-छन्द-अलंकारों का संयोजन है। अनुप्रास और तुकान्तविन्यास की छटा ही निराली है, तिस पर देशज एवं तद्भव प्रचलित अप्रचलित शब्दों तथा लोकोक्तियों/कहावतों का प्रयोग भाषा को सुगम तथा अर्थ को चमत्कारी बना देता है। विषय के प्रतिपादन की शैली भी उनकी अपनी है। महाकाव्य की कसौटी पर खरा उतरने से यह महाकाव्य तो सिद्ध है ही, इसमें भ. महावीर के निर्वाण के पश्चात् की प्रवृत्तियों का कालक्रमानुसार प्रामाणिक कथन है तथा राजा, राज्य तथा उनकी राजधानियों के नामों के उल्लेख से यह एक इतिहासग्रन्थ भी है। पौराणिक कथाओं के चित्रण/ वर्णन से पुराण के वैशिष्टय से युक्त होकर भी यह पुरातात्त्विक प्रवृत्तियों का भी प्रदर्शक है। गृहस्थ और मुनिधर्मों के स्वरूप के साथ-साथ ब्राह्मण के कर्तव्याकर्तव्यों का विशद विवेचन होने से यह धर्मशास्त्र भी है। अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, सर्वज्ञता की सिद्धि तथा विभिन्न दार्शनिकों के मतों का खण्डन और जिनमत के मंडन होने से यह न्यायशास्त्र की भूमिका भी निभाता है। अनेक शब्दों का संकलन/प्रयोग होने से यह शब्दशास्त्र भी है। (वीरोदय महाकाव्य प्रस्तावना - पृ. 2)
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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