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सम्पादकीय वीरोदय महाकाव्य राणोली (सीकर-राजस्थान) के सेठ चतुर्भुज और उनकी अर्धागिनी घृतवरी देवी के सपूत पं. श्री भूरामल जी शास्त्री की एक विशिष्ट कृति है। पं. श्री भूरामल जी ही बाद में चारित्र पथ पर अग्रसर होकर आचार्य श्री ज्ञानसागर के नाम से एक लोकविश्रुत जैन सन्त हुए। ये महाकवि कालिदास, भारवि, माघ, श्रीहर्ष, आदि प्राचीन कवियों की श्रेष्ठ काव्य-परम्परा को पुनरूज्जीवित करने वाले 20वीं शताब्दी के एक प्रतिभा सम्पन्न सुप्रसिद्ध यशर महाकाव्यकार/साहित्यकार हैं। इन्होंने इस सदी में भी इन प्राचीन महाकवियों के महाकाव्यों के समतुल्य संस्कृत में उच्चकोटि के महाकाव्य और चरितकाव्यों की रचना की है और हिन्दी भाषा में भी अनेक अमूल्य कृतियों का सृजन एवं पद्यानुवाद किया है तथा अनेक टीकाएं भी लिखी हैं। इस प्रकार इन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी के साहित्य-भंडार को समृद्ध बनाया है। ये सुप्रसिद्ध कृतियाँ इस प्रकार हैं - संस्कृत भाषा में - (क) महाकाव्य-जयोदय/वीरोदय/सुदर्शनोदय/भद्रोदय (ख) चरितकाव्य-मुनिमनोरंजनाशीति दयोदय (चम्पूकाव्य) (ग) जैनसिद्धान्त-सम्यक्त्वसार शतक । (घ) धर्मशास्त्र- प्रवचनसार प्रतिरूपक। हिन्दी भाषा में - (क) चरितकाव्य - ऋषभावतार/भाग्योदय/विवेकोदय/ गुणसुन्दरवृत्तान्त। (ख) धर्मशास्त्र – कर्तव्यपथ प्रदर्शन/सचित्तविवेचन/तत्त्वार्थसूत्र टीका/
मानवधर्म। (ग) पद्यानुवाद - देवागम स्तोत्र/नियमसार/अष्टपाहुड। (घ) अन्य कृतियाँ - स्वामी कुन्दकुन्द और सनातन जैन धर्म/जैन विवाह
विधि।