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________________ ___ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन आगमन हुआ, तब आषाढ़ मास की षष्ठी तिथि को भगवान महावीर ने रानी प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। वर्षा-ऋतु के सुखद वातावरण में एक दिन रात्रि के अन्तिम प्रहर में, रानी ने सोलह स्वप्न देखे। स्तुतियों से तत्काल उसकी नींद टूट गई। प्रातःकालीन कृत्यों से निवृत्त होकर, सहेलियों के साथ वह अपने पति राजा सिद्धार्थ के पास गई। और सोहल स्वप्नों का वृत्तान्त राजा को सुनाया। स्वप्नों का फल 'राजा सिद्धार्थ ने स्वप्नों का फल बतलाते हए कहा- "हे कमलनयने ! सर्व स्वप्नों का सार यह है कि तुम्हारा यह होने वाला पुत्र संसार में गजराज के समान समुन्नत, महात्मा, धवल, धुरन्धर (वृषभ) के समान धर्म-धुरा का धारक, सिंह के समान स्वतन्त्र-वृत्ति, रमा (लक्ष्मी) के समान निरन्तर अखण्ड उत्सवों से मण्डित, मालाद्विक के समान सुमनों (पुष्पों और सज्जनों) का स्थल, चन्द्र के समान हम सबकी प्रसादभूमि, सूर्य के समान संसार में मोक्षमार्ग का प्रदर्शक, कलश-युगल के समान जगत में मंगलकारक, मीन-युगल के समान विनोद-पूर्ण, समुद्र के समान लोक एवं धर्म की मर्यादा का परिपालक, सरोवर के समान : संसार-ताप-सन्तप्त शरीरधारियों के क्लम (थकान) का छेदक, सिंहासन के समान गौरवकारी, विमान के समान देव-समूह से संस्तुत, नागलोक के समान सुगीत तीर्थ, रत्नराशि के समान गुणों से संयुक्त और अग्नि के समान कर्मरूप ईंधन का दाहक एवं पवित्रता का धारक होगा। देवियों द्वारा माता की सेवा भगवान महावीर के गर्भावतरण के पश्चात श्री, ही आदि देवियाँ वहाँ आईं। राजा के पूछने पर देवियों ने बताया कि महारानी प्रियकारिणी के गर्भ में तीर्थंकर जिनेन्द्र भगवान का अवतार हो रहा है। इसलिये इन्द्र के आदेश से तीर्थकर की माता की सेवा करने वे वहाँ आई हैं। अतएव उन्हें इस पुण्य कार्य की अनुमति मिले। राजा से आज्ञा पाकर वे सभी देवियाँ
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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