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________________ वीरोदय का स्वरूप वह कुण्डनपुर भोगीन्द्र अर्थात् भोग सम्पन्न जनों के (शेषनागके) निवास जैसा शोभित होता है, क्योंकि कोट के छल से चारों ओर स्वयं शेषनाग समुपस्थित हैं, परिखा के बहाने कोट के चारों ओर बढ़े हुये जलरूपी शेषनाग के द्वारा छोड़ी गई कांचुली ही अवस्थित है। वहाँ के सभी लोग सुलक्षण देवों के सदृश हैं। स्त्रियाँ भी देवियों के समान सुन्दर चेष्टा वाली हैं और राजा तो सुनाशीर-पुनीत-धाम है, अर्थात् उत्तम पुरूष होकर सूर्य जैसा पवित्र तेज वाला है, जैसा कि स्वर्ग में इन्द्र होता है। अतः वह नगर स्वर्ग के समान है। भ. महावीर के माता-पिता __उस कुण्डनपुर नगर में राजा सिद्धार्थ शासन करते थे। उन्होंने अपने बल से अनेक राजाओं को अपने अधीन कर लिया था। ये सभी अधीनस्थ राजा अपनी मुकुट-मणियों की प्रभा से उनके चरण-कमलों को सुशोभित करते थे। वह सौन्दर्य, धैर्य, स्वास्थ्य, गाम्भीर्य, उदारता, प्रजावत्सलता, विद्या आदि का निधान था। उसे चारों पुरूषार्थों का ज्ञान था। परम कीर्तिमान्, परम वैभवशाली, उस राजा का सम्पूर्ण ध्यान राज्य की समुन्नति पर केन्द्रित था। राजा सिद्धार्थ की पत्नी प्रियकारिणी थी। वह राजमहिषी अनुपम सुन्दरी, परम अनुरागमयी और पतिमार्गानुगामिनी थी। दया और क्षमा से परिपूर्ण हृदयवाली, शान्तस्वभावा, लज्जशीला, परमदानशीला और मनोविनोदप्रिया थी। परम सम्पत्तिशालिता, मंजुभाषिता, समदर्शिता, कोमलता आदि सभी गुण उसके संग से शोभा पाते थे। राज्य के लिये कल्याणकारिणी, दूरदर्शिनी, उस लोकाभिरामा ने अपने अप्रतिम गुणों से राजा सिद्धार्थ के हृदय में अचल स्थान पा लिया था। दोनों परस्पर अत्यधिक प्रेम करते थे। उनका समय सानन्द बीत रहा था। माता प्रियकारिणी के सोलह स्वप्न - ग्रीष्मकाल के पश्चात् जब पावस-ऋतु का आनन्ददायक
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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