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________________ वीरोदय का स्वरूप कंचुकी के साथ माता के समीप जाकर उनकी वन्दना कर उनकी सेवा में तत्परता से जुट गई। रानी को नहलाने में, उनका अलंकरण करने में, संगीत द्वारा मनोरंजन करने में, वे देवियाँ जरा भी प्रमाद नहीं करती थीं। देवियों के आग्रह पर रानी प्रियकारिणी, उनके भगवद्विषयक प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें सन्तुष्ट करती थीं। वे देवियाँ उनको यथासमय सुस्वादु भोजन कराती थीं। भ्रमण के लिये समीपवर्ती उद्यानों में ले जाती थीं। तत्पश्चात् पुष्पसज्जित शय्या पर लिटाकर उनके चरण दबाकर, पंखा झलकर सुला देती थीं। इस प्रकार वे देवियाँ माता के साथ ही गर्भस्थ जिनेन्द्रदेव की भी सेवा-अर्चना करने लगीं। यथातत्रार्हतोऽर्चासमयेऽर्चनाय, योग्यानि वस्तूनि तदा प्रदाय। तया समं ता जगदेकसेव्यमाभेजुरूत्साहयुताः सुदेव्यः ।। 16 ।। -वीरो.सर्ग.5। कुण्डनपुर में तीर्थकर महावीर का जन्म . धीरे-धीरे रानी प्रियकारिणी में गर्भवृद्धि के लक्षण देखकर राजा सिद्धार्थ अति प्रसन्न हुए। इसी बीच ऋतुराज वसन्त का शुभागमन हुआ। । चारों ओर उल्लास का साम्राज्य फैल गया। उसी मनोहर बेला में, चैत्र-मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को रानी प्रियकारिणी ने शुभलक्षणोपेत । पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म से रानी अत्यधिक हर्षित हुई। यथा सौरभावगतिस्तस्य पद्मस्येव वपुष्यभूत् । याऽसौ समस्तलोकानां नेत्रालिप्रतिकर्षिका ।। 41 ।। -वीरो.सर्ग.6। देवताओं द्वारा जन्मोत्सव .. प्रियकारिणी के गर्भ से जब भगवान ने जन्म लिया, तब सभी दिशाओं में आनन्द छा गया। इन्द्र का सिंहासन दोलायमान हो उठा। इन्द्र ने दूर से ही उन्हें प्रणाम किया और सभी सुरासुरों सहित कुण्डनपुर आकर नगर की तीन बार प्रदक्षिणा की। इन्द्राणी ने प्रसूतिगृह में प्रवेश कर माया-निर्मित शिशु को माता के पार्श्व में सुला दिया और जिन भगवान को
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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