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________________ ९० अनिल कुमार तिवारी जब हम पर्यावरण संकट को हिंसा का परिणाम कहते हैं तब इसी प्रकार की हिंसा की तरफ हमारा निर्देश होता है। ___ अहिंसा की चर्चा करते समय जितने प्रकार की हिंसा का उल्लेख किया गया उनमें दो तरह की हिंसा का पर्यावरण की समस्या से सीधा सम्बन्ध प्रतीत होता है ये है उद्यमी हिंसा और संकल्पी हिंसा। इनकी यहाँ पर कुछ विस्तार से चर्चा करना आवश्यक है। पर्यावरण समस्या का सीधा सम्बन्ध मनुष्य की विकास सम्बन्धी अवधारणा से होता है। विकास से सम्बन्धित एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण पर्यावरण पर विपरीत असर डालता है। प्राचीन काल में मनुष्य अन्य प्राणियों की तरह ही प्रकृति का एक भाग था। उसकी कोई भी गतिविधि प्राकृतिक असन्तुलन पैदा नहीं कर सकी क्योंकि उसकी इच्छायें और आवश्यकतायें सीमित थी। परन्तु समय के साथसाथ मानवीय इच्छा और आवश्यकता में वृद्धि हुई जिसकी पूर्ति के लिए मनुष्य ने विज्ञान और तकनीक का विकास किया। यह भी सत्य है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों की वृद्धि हुई जिसकी पूर्ति के लिए मनुष्य ने विज्ञान और तकनीक का विकास किया। यह भी सत्य है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों की वृद्धि के साथ-साथ मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा और ऊंची होती गयी। फलस्वरूप प्रकृति का दोहन तीव्र से तीव्रतर होता गया और अतिशय दोहन ने आधुनिक युग में पर्यावरण संकट का रूप धारण कर लिया है। इस संकट के पीछे उस यहूदी ईसाई अवधारणा को बताया जाता है जिसके अनुसार ईश्वर ने मनुष्य को संपूर्ण प्रकृति को अधीन करने का निर्देश दिया है। इसके फलस्वरूप मनुष्य के सम्पूर्ण प्रयास (उद्यम) प्रकृति का एक अंग न होकर उसको नियंत्रित करने की ओर उन्मुख रहा। इसका परिणाम आज पर्यावरण संकट के रूप में हमारे सामने है। परन्तु इस धार्मिक निर्देश पर इतना गंभीर आरोप लगाना मनुष्य की मौलिक प्रवृत्ति को नजरअंदाज करना है। वास्तव में मनुष्य सुखी रहना चाहता है और अपने सुख के लिए भौतिक संसाधनों को जुटाना है। इन संसाधनों से उत्पन्न तात्कालिक सुख का आकर्षण इतना तीव्र होता है कि मनुष्य उनके पाश में बंध जाता है। पर्यावरण में आज जो हम असंतुलन देख रहे हैं वह शायद इसी महत्त्वाकांक्षी मौलिक प्रवृत्ति का परिणाम है। अन्य तथ्य यह है कि यूनानी मस्तिष्क सदैव से बहिर्मुखी रहा है। यूनानी विचारक ही वास्तव में आधुनिक विज्ञान के जन्मदाता है। बहिर्मुखी व्यक्तित्व का बाह्य वस्तुओं में सुख की तलाश करना स्वाभाविक है और इस प्रवृत्ति का परिणाम प्राकृतिक असन्तुलन के रूप में होना नियत है।
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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