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जैन परंपरा में पर्यावरण हिंसा आती है जिससे बिना किसी विशेष असुविधा के बचा जा सकता है। जैसे मन बहलाने के लिए शिकार खेलना या प्रमादवश किसी के प्रति हिंसा करना। गांधीजी ने इसके लिए एक सूची तैयार की थी जिसमें आवश्यकता से अधिक भोजन करना, . विशाल भवन का निर्माण, रेशमी वस्त्र पहनना, मोतियों का व्यापार करना, कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल करना, पर्यावरण को दूषित करना, बडे पैमाने पर औद्योगीकरण, बेमतलब धन संचयन आदि को वर्जित कहा गया है क्योंकि इनसे अनाश्यक हिंसा होती है। ___ जैन परम्परा में अहिंसा का वही स्थान है जो करुणा का बौद्ध परम्परा में। इसका अर्थ यह है कि अहिंसा केवल एक निषेधात्मक विचार नहीं है बल्कि इसका भावात्मक पक्ष भी है। अहिंसा का मतलब दूसरों को कष्ट पहुँचाने से ही बचना नहीं है बल्कि उससे प्रेम करना भी इसमें शामिल है। ओशो रजनीश इस अर्थ में भी अहिंसा को पूर्ण या वास्तविक नहीं मानते। उनका मानना है कि अहिंसा वीतराग दशा है। यह राग और द्वेष दोनों से परे है। इसलिए वे गांधीजी को अहिंसक नहीं मानते क्योंकि गांधीजी के मत में अहिंसा प्रेम की अभिव्यक्ति है और यह अभिव्यक्ति निषेधात्मक (दूसरों को सताना नहीं) एवं भावात्मक (उनके कल्याण के लिए कार्य करना) दोनों तरीके से हो सकती है। सामान्यतया जैन विचारक जिस अर्थ में अहिंसा की बात करते हैं उसमें भावना का विशेष महत्त्व है। यदि हिंसा करने वाले की भावना पवित्र है, कल्याणमित्र की भावना है तो हिंसा दिखायी देने वाला कार्य अहिंसा की कोटि में ही आयेगा। पर्यावरण पर जैन परम्परा की दृष्टि से विचार करने में इस विचार का विशेष महत्त्व है। पर्यावरण संकट
यहाँ समस्या (problem) और संकट (crisis) में अन्तर स्पष्ट करना उपयोगी है। कोई भी समस्या एक ऐसी अप्रिय स्थिति होती है जो समाधान की अपेक्षा रखती है। समस्या का गम्भीर रूप ही संकट है और तुरन्त समाधान की अपेक्षा रखता है। आज पर्यावरण समस्या ने संकट का रूप धारण कर लिया। इसे हम तीन स्तर पर देख सकते हैं : स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक (Local, Regional and Global)। यह विभाजन समस्या से ज्यादा समाधान को ध्यान में रखकर किया गया है। सामान्यतया ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि जिस स्थान पर उत्पन्न होते हैं वहाँ इनकी प्रभाविता तीव्र होती है तथा इनको समाप्त करने का स्थानीय उपाय करना