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________________ आचार्य भावसेन कृत वेद प्रामाण्यवाद की समीक्षा ५५ व्यक्ति किन्हें माना जाए? जो वेद का अनुसरण करते हैं वे विशिष्ट हैं, यह कहना परस्पराश्रय दोष होगा क्योंकि वेद प्रमाण हैं या नहीं, यही प्रस्तुत विवाद का विषय है। ___ यदि युक्तिवाद या तर्क का आश्रय लेने से विशिष्टता प्राप्त होती है तो यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि वेद को प्रमाण माननेवाले युक्तिवादी विशिष्टों में अत्यधिक विरोध क्यों पाया जाता है? भाट्ट मीमांसक ग्यारह पदार्थ मानते हैं तथा प्रभाकर मीमांसक नौ पदार्थ मानते हैं। ये दोनों ईश्वर का तथा इन्द्र आदि देवताओं का अस्तित्व नहीं मानते। ये जगत् को नित्य मानते हैं- जगत की उत्पत्ति और प्रलय पर विश्वास नहीं करते, संसार को सत्य मानते हैं, जगत् की स्थिति हमेशा ऐसी ही रहती है जैसी इस समय हैं। वे आत्माओं की संख्या भी अनेक मानते हैं। वे जगत् की नित्यता में निम्न वेदवाक्य आधार के रूप में प्रस्तुत करते हैं ध्रुवा धौधुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वते इमे। ध्रुवं विश्वमिंद जगत् ध्रुवो राजा विशामयम्।। ध्रुवं ते राजा वरूणो ध्रुवं देवो बृहस्पतिः। ध्रुवं ते इन्द्रश्चाग्निश्च राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम्।। अर्थात् 'यह आकाश तथा पृथ्वी, पर्वत तथा संपूर्ण जगत् ध्रुव है उसी प्रकार यह प्रजाओं का राजा भी ध्रुव रहें। राजा वरूण, देव बृहस्पति, इन्द्र तथा अग्नि तुम्हारे राज्य को ध्रुव बनाएँ।' ___ इसके विपरीत शांकरीय तथा भास्करीय वेदांती ईश्वर तथा देवताओं का अस्तित्व मानते हैं तथा जगत् की उत्पत्ति तथा प्रलय मानते हैं, आत्मा एक ही मानते हैं तथा संसार को मिथ्या कहते हैं। इनके प्रमाणभूत वेदवाक्य निम्न हैं - सर्वं खल्विंद ब्रह्म नेह नानस्ति किंचन। आरामं तस्य पश्यन्ति न तं पश्यति कंचन।।" 'यह सब ब्रह्म ही है, यहाँ नाना कुछ नहीं है, सब उसके प्रभाव को देखते हैं, उसे कोई नहीं देखता।' इनमें भी परस्पर मतभेद हैं - शांकरीय तो सिर्फ अभेद ही मानते हैं, भास्करीय ब्रह्म और प्रपंच में भेदाभेद मानते हैं। नैयायिक सोलह पदार्थ मानते हैं और वैशेषिक छह पदार्थ मानते हैं। ये दोनों जगत् की उत्पत्ति और प्रलय मानते हैं, ईश्वर और देवताओं का अस्तित्व मानते हैं, प्रपंच सत्य मानते हैं तथा आत्माओं की संख्या अनेक मानते हैं। इनके प्रमाणभूत वेदवाक्य
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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