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________________ ५४ . संदीप कुमार तथा वेद के क्रियापद या विधायक वाक्य अदृष्ट से भिन्न अन्य पदार्थों का भी वर्णन करते हैं, यह स्वीकार करना चाहिए। तदनुसार 'प्रजापति से वेद उत्पन्न हुए' इस वेदवाक्य से ही वेद के कर्ता का अस्तित्व स्पष्ट होता है। मीमांसकों का कथन है कि सिद्धार्थ वाक्य प्रमिति को उत्पन्न नहीं करते अत: ये वाक्य प्रमाण नहीं होते। आचार्य भावसेन के अनुसार यह उचित नहीं है। सिद्धार्थ वाक्य को सुनकर अर्थ की प्रतीति तो होती ही हैं। यह कैसे कहा जा सकता है कि प्रमिति उत्पन्न नहीं होती। ___ मीमांसकों का उत्तर है कि सिद्धार्थ वाक्य से अर्थ तो प्रतीत होता है किंतु वह प्रतीति स्मरणरूप है। अत: यह प्रमाण नहीं है। __ आचार्य भावसेन के अनुसार मीमांसकों का यह उत्तर भी अंततः प्रतिकूल ही सिद्ध होता है। उनके कथनानुसार 'प्रजापति से वेद उत्पन्न हुए' इस प्रस्तुत वाक्य को स्मरणरूप मानें तो स्पष्ट है किसी को इसका अनुभव भी हुआ होगा क्योंकि अनुभव से उत्पन्न संस्कार से ही स्मरण होता है। शालिकनाथ ने स्मृति के विषय में कहा भी प्रमाणमनुभूतिः सा स्मृतेरन्या पुनः स्मृतिः। पूर्वविज्ञानसंस्कारमात्र ज्ञानमुच्चते।। अर्थात् “अनुभूति प्रमाण होती है तथा वह स्मृति से भिन्न होती है। स्मृति वह ज्ञान है जो पहले के ज्ञान के संस्कार से उत्पन्न होता है।" अत: 'प्रजापति से वेद उत्पन्न हुए' इस वाक्य को स्मरणरूप मानने पर भी असत्य नहीं कहा जा सकता। तदनुरूप वेद अपौरूषेय नहीं हो सकते। वेद पौरुषेय हैं किंतु सर्वज्ञप्रणीत नहीं हैं अतः वे प्रमाणभूत नहीं है। ३. वेद बहुसम्मत नहीं है वेदों के समर्थक मीमांसा आदि दर्शनों का मत है कि आयुर्वेद के समान वेद भी बहत लोगों को मान्य है अत: वे प्रमाण हैं। जैनाचार्य भावसेन के अनुसार सिर्फ बहुत लोगों को मान्य होना प्रमाणभूत होने का सूचक नहीं है। तरूष्क (मलेच्छ) लोगों के शास्त्र भी बहुत लोगों को मान्य हैं किंतु उन्हें वेदानुयायी प्रमाण नहीं मानते। इसके प्रतिउत्तर में कहा जाता है कि साधारण लोगों की मान्यता से प्रमाणभूत होना व्यक्त नहीं होता- वेदों को ही विशिष्ट व्यक्तियों की मान्यता प्राप्त है अत: वह प्रमाण है। यहाँ प्रश्न है कि विशिष्ट
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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