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________________ संदीप कुमार शिष्य परम्परा से चलता है ऐसा नहीं- पिटकत्रय का अध्ययन भी गुरू शिष्य परंपरा से ही चलता है। पिटकाध्ययनं सर्वं गुर्वध्ययनपूर्वकम्। पिटकाध्ययनवाच्यत्वादधुनाध्ययनं यथा। फिर मीमांसक पिटकत्रय को प्रमाणभूत क्यों नहीं मानते? यदि बौद्ध त्रिपिटक को पुरुषकृत मानते हैं अत: वे अप्रमाण हैं तो बौद्ध मतानुसार वेद भी पुरुषकृत हैं अतः उन्हें भी अप्रमाण मानना होगा। अत: वेद और पिटकत्रय के प्रमाणभूत होने में अंतर करना पक्षपातपूर्ण होगा, तार्किक नहीं।' मीमांसकों ने अनुमान प्रस्तुत किया है कि अतीतानागतौ कालौ वेदकारविवर्जितौ। कालशब्दाभिधेयत्वादिदानींतनकालवत। यह काल वेदकर्ता से रहित है उसी प्रकार सभी काल वेदकर्ता से रहित होते हैं। अतः अतीत और भविष्य में भी वेद के कर्ता नहीं हो सकते। आचार्य भावसेन के अनुसार यह अनुमान भी दोषपूर्ण है। विविध वैदिक ग्रंथों के कर्ता बोधायन, आपस्तम्ब, आश्वलायन, याज्ञवल्क्य आदि जिस काल में थे उसे वेदकर्ता से रहित कैसे कहा जा सकता है। जैसे महाभारत आदि ग्रंथों के रचयिता व्यास आदि ऋषि थे। उसी प्रकार विविध वैदिक ग्रंथों के रचयिता आपस्तम्ब आदि ऋषि थे। अतः इन दोनों में फर्क करना ठीक नहीं है। महाभारत आदि ग्रंथों के अंत में ग्रंथकार के नाम पाए जाते हैं। वैसे वैदिक ग्रन्थों के अंत में नहीं पाए जाते। अतः उन ग्रंथों का कोई कर्ता नहीं यह कहना भी उचित नहीं। क्योंकि एक तो कई वैदिक ग्रंथों में कर्ता का नाम पाया जाता है- जैसे कि बौधायन कल्पसूत्र में “वह नारायण में प्रवेश करता है ऐसा भगवान बौधायन ने कहा है" यह उल्लेख है। द्वितीय, मात्र नाम न मिलने से कोई ग्रंथ कर्ता से रहित नहीं हो जाता - वर्तमान में भी कुछ कवि अपना नाम लिखे बिना ग्रंथ रचना करते है किंतु इतने से उनके ग्रंथ अपौरुषेय नहीं हो सकते। २. वेदकर्ता के सूचक वैदिक वाक्य :- मीमांसा के अनुसार जिस प्रकार आकाश के कर्ता का किसी प्रमाण से ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार वेद के कर्ता का भी किसी प्रमाण से ज्ञान नहीं होता। अत: वेद का कोई कर्ता नहीं है। ___ आचार्य भावसेन के अनुसार उपरोक्त तर्क उचित नहीं है। वेद के कर्ता के विषय में वैदिक ग्रंथों के ही आगम प्रमाण मिलते हैं। जैसे कि कहा है- “उस समय दिन नहीं था, रात भी नहीं थी, सिर्फ एक प्रजापति था, उसने तप किया, उसके तप करने से
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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