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________________ आचार्य भावसेन कृत वेद प्रामाण्यवाद की समीक्षा संदीप कुमार भारत की प्राचीन सभ्यता- कला, स्थापत्य, साहित्य, धर्म, नीति तथा विज्ञानइन सब का एक समन्वित मूर्त रूप था। किन्तु भारत की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वैचारिक उपलब्धि थी - दर्शन। यही समस्त मूर्धन्य व्यवहारिक एवं सैद्धान्तिक गतिविधियों का चरम लक्ष्य माना जाता था तथा विविध प्रकार की जातियों वाले इस विशाल भूभाग की सामाजिक संस्कृति में जो विविधता है- उसमें एकता तथा तादात्म्य स्थापित करने वाला यही एक बिंदु था। यह एकता हमारी प्राचीन संस्कृति की एक आत्मिक आकांक्षा का फल थी, उन आध्यात्मिक सिद्धांतों के महत्त्वबोध का फल थी- जो अन्य सभी मूल्यों की बजाय कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण माने जाते थे और यह भावना विभिन्न राजनीतिक परिवर्तनों के युगों की लम्बी यात्रा के बाद आज भी जीवन्त है। __ भारतीय दर्शन परम्परा में नौ दर्शनों को शामिल किया जाता है। इसके दो प्रमुख तथा प्राचीन वर्ग हैं- 'आस्तिक' तथा 'नास्तिक'। यहाँ अस्तिक और नास्तिक विशेष अर्थ में प्रयुक्त हैं, न कि साधारण। सामान्यतः आस्तिक के दो अर्थ हैं- प्रथम व्युत्पत्तिमूलक तथा दूसरा परम्परागत अर्थ। व्युत्पत्ति के अनुसार आस्तिक वही है, जिसकी परलोक और पुनर्जन्म में आस्था हो। इसके विपरीत जो परलोक और पुनर्जन्म को अस्वीकार करता है, वह नास्तिक है। इस अर्थ को स्वीकार करने में कठिनाई यह है कि बौद्ध और जैन दार्शनिक पुनर्जन्म को मानते हुए भी मान्य विभाजन में नास्तिक कहलाते हैं। परम्परागत अर्थ के अनुसार ईश्वर और आत्मा में आस्था रखने वाले को आस्तिक तथा अनास्था रखने वाले को नास्तिक मानते हैं। किंतु इसमें भी एक कठिनाई है- ईश्वर में अविश्वास रखने वाले मीमांसा और सांख्य को आस्तिक माना जाता है। वहीं आत्मा में विश्वास करने वाले जैन दर्शन को नास्तिक माना जाता है। दार्शनिक दृष्टि से आस्तिक- नास्तिक का एक विशेष पारिभाषिक अर्थ है- आस्तिक दर्शन वेदों को प्रमाण मानते हैं, वहीं नास्तिक दर्शनों को वेदों का प्रामाण्य स्वीकार नहीं है। वेदों की निन्दा करने वाला नास्तिक है। मनुस्मृति का 'नास्तिको वेद निन्दकः' वाक्य प्रसिद्ध है। इसप्रकार तीन मुख्यतया नास्तिक दर्शन हैं- चार्वाक, बौद्ध एवं जैन तथा छः आस्तिक दर्शन हैं- सांख्य, योग, परामर्श (हिन्दी), खण्ड २८, अंक १-४, दिसम्बर २००७-नवम्बर २००८, प्रकाशन वर्ष अक्तुबर २०१५
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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