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सुनील राऊत ३. कुंदकुंदाचार्य अपने बताए हुए दोषपूर्ण मार्गों का स्पष्ट विवेचन नहीं करते
हैं। किन्तु, यह स्पष्ट है कि यहाँ वे उनका निर्देश कर रहे हैं, जो वस्त्र पहनते हैं और भिक्षा पात्र रखते हैं। यह विवरण एक श्वेताम्बर भिक्षु पर सटीक बैठता है। इसके अतिरिक्त यह ब्राह्मणवादी और बौद्ध अनुशासन
से मेल खाता है। ४. यहाँ कर्म के तीन द्वारों (मनस, वाणी और शरीर) के रक्षण का संकेत है। ५. आर्यिका का अर्थ है, एक आदर्श स्त्री श्राविका होने योग्य है।
जैन, माणिकचंद डी., (अनु. व संपा.) निवित्तभाष्य, माणिकचन्द जैन
ग्रन्थ प्रकाशन, गुजरात, १९७०, सूत्र ३५०६-३५०८. ७. बालक, वृद्ध पुरुष, उभयलिंगी (किन्नर), मंदबुद्धि व्यक्ति, नपुंसक व्यक्ति,
व्याधी युक्त व्यक्ति, ऋणी व्यक्ति, अपराधी व्यक्ति, दुराचारी व्यक्ति, अनर्गल बोलनेवाला व्यक्ति, जिसने जैन शिक्षाओं को अस्वीकार किया
है, गर्भवती स्त्री, वह स्त्री जिसके छोटे बच्चे/बच्चा है आदि। ८. वही, जैनी, पी.एस., सूत्र ५८, पृ. ६५
ब्राह्मी और सुन्दरी प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की दो पुत्रियाँ थीं जो बिना गृहस्थ जीवन में प्रवेश किये ही साध्वी बन गयी थी। रजोमती, बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की मंगेतर थी, जिसने विवाह की संध्या को ही उनके साथ संसार छोडकर संन्यासी जीवन अंगीकार किया। चन्दना, महावीर
की छत्तीस हजार साध्वीओं के समूह की प्रमुख थी। १०. जैन, महेन्द्रकुमार, (अनु. व संपा.), 'न्यायकुमुदचन्द्र', श्री. सत्गुरू
प्रकाशन, दिल्ली, १९९६, पृ. ८६५-८७८ । ११. दीक्षित, के.के., (अनु. व संपा.), 'तत्त्वार्थसूत्र', एल.डी. संस्थान,
अहमदाबाद, १९७४, पृ. ७, १३ १२. सूत्रप्रभृत, सूत्र ६, ८ १३. जैन, महेन्द्रकुमार, (अनु. व संपा.) तर्करहस्यदीपिका वृत्ती, श्री सत्गुरू
प्रकाशन, दिल्ली, १९७०, पृ. ३०१-३०८, सूत्र १ १४. अमृतचन्द्र, 'पुरुषार्थसिद्धपाय', श्री परमश्रृत प्रभावक मण्डल, श्रीमतराजचन्द्र ___ आश्रम, आगास, गुजरात, १९६६, सूत्र ४४-४५