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सुनील राऊत
चर्चा में हमने आंतरिक और बाह्य अपरिग्रह में भेद किया उसी प्रकार हिंसा और अहिंसा की चर्चा में भी हमे आंतरिक और बाह्य हिंसा और आंतरिक और बाह्य अहिंसा में भी भेद करना होगा।
जैन दर्शन में कभी-कभी आंतरिक या बाह्य स्तर पर हिंसा की किसी भी संभावना को टालने की प्रवृत्ति पाते हैं। यद्यपि साधू और साध्वियों को सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव हिंसा से बचने का विशेष निर्देश दिया गया है फिर भी कुछ ऐसी हिंसाएँ होती हैं जिनके प्रति वे सचेत नहीं रहते । वास्तव में हम कितना भी हिंसा से बचने का प्रयास करें हिंसा का पूरी तरह निराकरण मानवीय रूप से असंभव है। इस प्रकार हम उद्देश्यपरक हिंसा और अनुद्देश्यपरक हिंसा (intentional and non-intentional Himsa) में भेद कर सकते हैं और हिंसा को केवल उद्देश्यपरक हिंसा के रूप में ले सकते हैं। यदि हम हिंसा के संदर्भ में स्त्रियों के विरुद्ध आपत्तियों को देखें तो हम पाते हैं कि अधिकांश हिंसा अनुद्देश्यपरक होती है। कपडे पहनने से होनेवाली हिंसा उद्देश्यपरक नहीं हो सकती क्योंकि स्त्रियाँ हिंसा करने के उद्देश्य से कपडे नहीं पहनती। बल्कि स्त्री हो या पुरुष कपडे पहनने का संबंध सांस्कृतिक, सामाजिक परंपरा से संबंधित है।
यह आपत्ति कि केवल स्त्रियों के अंगों में सूक्ष्म जीव पनपते हैं सरासर गलत है, क्योंकि पुरुष शरीर में भी सूक्ष्म जीव पनपते हैं। लेकिन शरीर में उत्पन्न कीटाणुओं की हिंसा उद्देश्यपरक हिंसा नहीं है। स्त्री में मासिक बहाव का होना एक नितांत प्राकृतिक घटना है और इसे किसी भी दृष्टि से उद्देश्यपरक हिंसा के अंतर्गत नहीं माना जा सकता। दूसरे, स्त्री के जीवन में मासिक बहाव कोई निरंतर घटना नहीं है । यदि यह मोक्ष प्राप्ति में बाधा होता तो दिगंबरों द्वारा मासिक बहाव समाप्त होने कि आयु में स्त्रियों को मोक्ष प्राप्ति की अनुमति दी जानी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ये देखना महत्त्वपूर्ण है कि अमृतचंद्र जैसे दिगंबर विद्वानों में आंतरिक और बाह्य हिंसा और अहिंसा के भेद पर बल दिया है। उनके अनुसार मन में राग का उदय होना ही अपने में एक हिंसा है और मन में राग का बिलकुल न होना ही अहिंसा है। अतः यदि मन में कोई राग उत्पन्न न हो और बाह्य रूप मे कोई हिंसा हो जाये तो उसे हिंसा नहीं कहा जा सकता । १५ अमृतचंद्र के अनुसार, किंतु प्राचीन दिगम्बर आचार्य इस महत्त्वपूर्ण भेद को भूल जाते हैं और स्त्रियों पर सूक्ष्म जीव हिंसा का आरोप लगाते हैं। स्त्री में स्वाभाविक मासिक बहाव है और एक मासिक बहाव में एक ही