________________
जैन दर्शन में स्त्री - मोक्ष संबंधी विचार- एक दार्शनिक समीक्षा
है एक पवित्र जीवन जीना । दिगंबरो के तर्क को निरस्त करते हुए आचार्य गुणरत्न कहते हैं कि मोक्ष के अनिवार्य कारक हैं, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण और स्त्रियाँ पूर्णतया इनको प्राप्त करने में सक्षम हैं। इसलिए वे मोक्ष प्राप्त करने योग्य हैं।
४३
स्त्री मुक्तिसंबंधी आचार्य मेघविजय के विचार
आचार्य मेघविजय दिगंबरों के इस मत का खंडन करते हैं कि स्त्रियाँ स्वभावतः चंचल होती हैं। वह स्त्रियों की अशुद्धता संबंधी धारणाओं का भी खंडन करते हैं। यहाँ तक कि वह नपुंसक के लिए भी मोक्ष की शक्यता बताते हैं । वह आगे यह भी कहते हैं कि स्त्रियाँ दिगंबरों द्वारा प्रतिपादित ग्यारह प्रतिमाओं संबंधी महाव्रतों का पालन करने में सक्षम हैं और यह भी कि, संन्यासियों द्वारा कपडे, भिक्षापात्र, आदि रखना कोई परिग्रह नहीं है।
इस प्रकार मेघविजय का योगदान उनका पुरुष, स्त्री और नपुंसक की जैविकीय और मनोवैज्ञानिक लक्षणों के बीच भेद प्रतिपादित करना है। उनके अनुसार जब एक व्यक्ति का मन पुंवेद से उत्पन्न स्त्री संबंधी यौन आकांक्षा पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह ‘भावपुरुष’ कहलाता है। और जब व्यक्ति का मन स्त्रीवेद से उत्पन्न पुरुष संबंधी यौन आकांक्षा पर विजय प्राप्त कर लेता है तब वह 'भावस्त्री' कहलाता है। उसी प्रकार नपुंसकवेद से उत्पन्न दोनों प्रकार की यौन आकांक्षाओं से उपर उठने वाले व्यक्ति के ‘भावनपुंसक' कहते हैं। अतः दिगंबर और श्वेतांबर का विवाद स्त्री-पुरुष और नपुंसक व्यक्तिओं के इसी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक भेद पर केंद्रित रहता है।
आचार्य मेघविजय इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि तीर्थंकर मल्लिनाथ वस्तुतः मल्ली नामक एक स्त्री तीर्थंकर थी, जिसे दिगंबरों ने पुरुष के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। तीर्थंकर मल्ली वह स्त्री थी जिसने अपने किशोरावस्था में ही केवलज्ञान प्राप्त कर लिया था। तीर्थंकर मल्ली की स्त्री प्रतिमाऐं इसके प्रमाण हैं।
मेघविजय का दिगंबरों के विरुद्ध तर्क है कि स्त्रियों के लिए वस्त्र त्याग द्वारा पूर्ण अपरिग्रह और अहिंसा का पालन करना संभव नहीं है। किंतु यदि वे ब्रह्मचर्य के अपने महाव्रत का पालन करने के लिए वस्त्र पहनती हैं तो ऐसा करना बिलकुल न्यायोचित है। मेघविजय यह भी तर्क करते हैं कि साधुओं के वस्त्र और अन्य वस्तुऐं परिग्रह नहीं हैं क्योंकि वे उनके संयम साधना में सहायक है। उदाहरण के लिए जलपात्र, मोरपंख की झाडू आदि ।