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________________ ४२ सुनील राऊत क्योंकि उनमें भी मोक्ष के लिए अनिवार्य दशाएँ पाई जाती हैं, जैसाकि पुरुषों में पाई जाती हैं। इसके विरुद्ध दिगंबर आक्षेप करते हैं कि उभयलिंगी की भाँति स्त्रियों में भी मोक्ष के लिए आवश्यक विशेषताओं का (For infinite, knowledge, perception, bliss, energy) अभाव होता है। उनके अनुसार स्त्री मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती क्योंकि वह वस्त्र धारण करती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कपड़ों में कीटाणु पनपते हैं और ऐसे में उनकी हिंसा अपरिहार्य हो जाती है। किंतु यापनीयों का कथन है कि ऐसी किसी आकस्मिक हिंसा को हिंसा नहीं माना जा सकता क्योंकि यह किसी असावधानी या लापरवाही से उत्पन्न नहीं होती। जबकि सावधानी अपने आप में ही एक हिंसा है। जैसा की आगम कहते हैं, व्यक्ति के जीवन में असावधानीपूर्ण किए गए कृत्य ही हिंसा है। यदि ऐसा न होता तब तो एक नग्न साधू भी भिक्षा और औषधि आदि लेने में हिंसा करता हुआ माना जाएगा। इसलिए यह तर्क स्त्री को मोक्ष से दूर नहीं रख सकता। ऐसा कहा गया है कि असंयमित आचरण ही हिंसा है। एक संयमी व्यक्ति के लिए कोई बंधन नहीं है क्योंकि उसने स्वयं को सभी प्रकार की हिंसाओं से संयमित कर लिया है। इसलिए यापनीयों का तर्क है कि त्रिरत्नों का धारण ही मोक्ष के लिए अनिवार्य शर्त है। अतः निकृष्टता या उत्कृष्टता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। आचार्य जयसेन के स्त्री मुक्ति विरुद्ध विचार __ प्रभाचंद्रसूरी के बाद एक दूसरे दिगंबर आचार्य जयसेन ने भी स्त्री मुक्ति की संभावना का विरोध किया। उनका तर्क संन्यासियों के अनुशासन से संबंधित है। यह मोक्ष के लिए नग्नता को एक आवश्यक शर्त मानता है। दूसरे तर्क में जयसेन स्त्री की जैविक संरचना को आधार बनाते हैं। वह मासिक बहाव जैसी जैविक विशिष्टताओं को आधार बनाकर स्त्री की तथाकथित अशुद्धता की बात कहते हैं। उनके अनुसार यह न केवल मन को चंचल बनाती हैं बल्कि शरीर को अस्वस्थ भी करती है। इसके अतिरिक्त गर्भधारण और जीव उत्पत्ति संबंधी तथाकथित दुर्गुणों से युक्त होना उसे महाव्रतों के पालन के अयोग्य बनाता है। जयसेन स्त्रियों द्वारा पूर्ण कर्मनाश की संभावना से इनकार करते हैं।१२ स्त्री मुक्ति के संबंध में आचार्य गुणरत्न का उत्तर : ___ आचार्य गुणरत्न श्वेतांबर दृष्टिकोण को आगे बढाते हुए यह तर्क करते है कि वस्त्र अपने आप में मोक्ष के लिए हानिकारक या बाधक नहीं है। वस्त्र पहनने का अर्थ
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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