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________________ सुनील राऊत आपत्तिजनक कथन पर मौन रखते हैं, जिसमें वह जैविक संरचना के आधार पर स्त्रियों की महाव्रत धारण करने की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। आगे चलकर नौंवी शताब्दी में 'स्त्रीनिर्वाणप्रकरण' नामक ग्रंथ में हम विद्वतापूर्ण प्रतिक्रिया पाते हैं, जिसमें मोक्ष प्राप्ति में स्त्रियों के सक्षम होने का समर्थन किया गया है। ऐसा समर्थन न केवल श्वेताम्बर आचार्यों की ओर से नहीं था बल्कि शाकटायन परंपरा के आचार्य यापन्नीय द्वारा भी दिया गया है। स्त्री मोक्ष के समर्थन में शाकटायन के विचार शाकटायन के अनुसार स्त्रियाँ भी निर्वाण प्राप्त कर सकती हैं क्योंकि पुरुषों की भाँती वह भी त्रिरत्न से युक्त हैं। जैसा कि जैन धर्म के सभी संप्रदाय मानते हैं कि मोक्ष केवल मनुष्य जाति को ही प्राप्त हो सकता है। अतः त्रिरत्न जो कि मोक्ष का एक मार्ग है, स्त्रीत्व के साथ असंगत नहीं है। वह आगे कहते हैं, एक साध्वी जैन विचारों को समझती है, उसपर आस्था रखती है और उनका अचूक पालन भी करती है। अतः एक स्त्री होने में और त्रिरत्न में कोई असंगतता नहीं है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् आस्था की ओर ले जाता है और सम्यक् आस्था सम्यक् आचरण की ओर ले जाती है। यही मुख्यतः त्रिरत्न हैं। इसकी पूर्णता ही व्यक्ति (पुरूष या स्त्री) को मोक्ष प्राप्त कराती है, जो कि सभी कर्मों से मुक्त होना है। यहाँ पूर्वपक्ष कहता है कि स्त्री निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकती क्योंकि१. स्त्रियाँ केवल छठे गुणस्थान तक ही साधना कर सकती हैं क्योंकि सातवें गुणस्थान की प्राप्ति के लिए संपूर्ण गृहस्थ जीवन का त्याग करना होता है। २. उनमें लब्धि जैसी अलौकिक शक्तियों का अभाव होता है, जैसे वाद-विवाद या शास्त्रार्थ जितना। ३. स्त्रियाँ जिनकल्प के (तीर्थंकरों के) विचारों का विषय नहीं होती। उपर्युक्त तर्कों के विरुद्ध शाकटायन कहते हैं किः१. यह सत्य नहीं है क्योंकि कुछ गुणों (जैसे-सातवें गुणस्थान पर जाने की योग्यता) के अभाव को मोक्ष प्राप्ति की अयोग्यता के साथ मिलाना अनुपयुक्त २. इसके अतिरिक्त निषितभाष्य में ऐसा उल्लेख है कि बीस दोषों से युक्त व्यक्ति को दीक्षा नहीं देनी चाहिये। किंतु यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि स्त्री होना मोक्ष प्राप्ति के विरुद्ध है। अतः स्त्री होना भिक्षु होने के मार्ग में कोई बाधा नहीं
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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