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सुनील राऊत
उपर्युक्त दो संप्रदायों के बीच विवाद का एक मुख्य विषय वस्त्र धारण को लेकर था। दिगम्बर मानते हैं कि जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर एक नग्न संन्यासी थे और उन्होंने अन्य वस्तुओं के साथ-साथ वस्त्र त्याग को भी मोक्ष के लिए आवश्यक माना।' वही दूसरी ओर श्वेताम्बर मानते हैं कि भिक्षुओं के लिए वस्त्र त्याग को अनिवार्य नहीं मानना चाहिए। यह केवल एक विकल्प हो सकता है। उपर्युक्त परस्पर विरोधी धारणाओं में सामंजस्य बिठाने के लिए श्वेताम्बरों ने यह तर्क दिया कि यद्यपि महावीर के समय में नग्नता का अभ्यास करना आवश्यक माना जाता था, लेकिन वह आगे की पीढी के लिए संस्तुत ( advisable ) नहीं था । जैन ग्रंथ सूचित करते हैं कि महावीर के मृत्यु के तुरंत बाद नग्नता का अभ्यास स्थगित हो गया था। इसलिए श्वेताम्बरों ने दिगम्बरों की यह कहते हुए आलोचना की कि वे उनके आगमों की प्रामाणिकता का निषेध करते हैं।
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दिगम्बरों ने नग्नता को मोक्ष के लिए अनिवार्य बताया। उनके अनुसार ऐसा कोई व्यक्ति, पुरुष या स्त्री, मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता जिसने वस्त्र त्याग नहीं किया हो । क्योंकि वस्त्र धारण से यौन आकांक्षा आपादित होती है जो लज्जा के रूप में व्यक्त होती है। वहीं दूसरी ओर दिगम्बर आचार्यों ने स्त्रियाँ को किसी भी स्थिति में नग्नता के अभ्यास की अनुमति नहीं दी और इस बात पर जोर दिया कि स्त्रियाँ वस्त्र धारण करें। इससे उन्होंने यह मत प्रतिपादित किया कि स्त्री शरीर को धारण करने वाला व्यक्ति मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता। इस तरह स्त्रियों को सभी प्रकार के परिग्रहों से मुक्त होने की संभावना से अलग रखा गया। इस तरह मोक्षप्राप्ति से भी वंचित रखा गया। यद्यपि स्त्री साधकों को आर्यिका या साध्वी कहा गया लेकिन तकनीकि रूप से उन्हें कभी साधक या संन्यासी नहीं माना गया। वहीं दूसरी ओर, श्वेताम्बरों ने वस्त्रों को एक परिग्रह नहीं माना बल्कि धार्मिक जीवन का एक आवश्यक अंग माना । इसलिए यद्यपि साध्वियाँ नियम के अनुसार वस्त्र पहनती थीं, फिर भी वे अन्य भिक्षुओं के समान साधक का स्थान रखती थीं और इस प्रकार स्त्रियों को उनके स्त्री शरीर के साथ ही मोक्ष के लिए पात्र माना गया। इस प्रकार श्वेताम्बर संप्रदाय में मोक्ष किसी शारीरिक स्थिति पर आधारित नहीं है बल्कि मात्र आध्यात्मिक उन्नति पर आधारित है।
सुत्तपाहुड में कुंदकुदांचार्य का तर्क
कुंदकुंदाचार्य ने परिव्रज्या का स्वरूप स्पष्ट करते हुए अपने ग्रंथ में आठ सूत्र