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________________ जैन दर्शन में स्त्री - मोक्ष संबंधी विचार : एक दार्शनिक समीक्षा* सुनील राऊत भारत की कुछ जीवंत धार्मिक परम्पराओं में जैन दर्शन है जो काफी संख्या में ऐसी स्त्रियों को साध्वी के रूप में स्वीकार करता है जो गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यासी जीवन व्यतीत करती हैं। इस तथ्य से ऐसा लग सकता है कि जैन स्त्रियाँ पुरूषों के समान्तर ही धार्मिक और आध्यात्मिक स्थिति धारण करती हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि जैन परंपरा के अंदर भी स्त्रियों की स्थिति के बारे में गहरा मतभेद है। इस लेख में, दो मुख्य जैन संप्रदाय- दिगम्बर और श्वेताम्बर के बीच एक पुराने विवाद, 'क्या स्त्रियाँ मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं ? " की समीक्षा की है। जैन ग्रंथों का एक गहन अध्ययन लैंगिकता सम्बंधी असमानता को दर्शाता है । ऐसा ग्रंथ स्त्री और उसके शरीर को लैंगिकता सम्बंधी प्रश्नों से सम्बंधित करते हैं। और स्त्री को केवल एक भावनाप्रधान प्राणी के रूप में देखते हैं। जैन संप्रदायों में चर्चा की पृष्ठभूमि मुख्यरूप से चर्चा इस प्रश्न पर केंद्रित है कि क्या स्त्रियाँ जैन धर्म में बताए गए महाव्रतों का पालन कर सकती हैं, जिनमें अहिंसा और अपरिग्रह को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। जैन दर्शन के अनुसार, त्याग अनिवार्य है और गृहस्थ जीवन में मोक्ष संभव नहीं है। एक गृहस्थ लघुव्रतों का पालन कर सकता है और इस निम्न स्तर पर पुरुष और स्त्री दोनो समान पाये जाते हैं । किंतु संन्यासी जीवन में व्यक्ति को महाव्रतों का पालन उनके उत्कट एवं सघन रूप में करना होता है। यहाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर संप्रदायों के बीच इसविषय पर मतभेद है कि क्या स्त्रियाँ महाव्रतों का पालन कर सकती हैं ? दिगम्बरों का मानना है कि १. स्त्रियों की शारीरिक संरचना के कारण (जिसमें मासिक बहाव एक मुख्य हिस्सा है) एक प्रकार की हिंसा उनके जीवन में अपरिहार्य है । २. क्योंकि स्त्रियाँ वस्त्र विहीन नहीं रह सकतीं इसलिए एक प्रकार का परिग्रह भी उनके जीवन का एक अनिवार्य अंग बन जाता है। ३. स्त्रियाँ स्वभाव से ही भावना प्रधान (गृहस्थ passionate) होती हैं। अतः वे कभी भी भावनाओं से मुक्त नहीं हो सकतीं। ये सभी बिंदु चर्चा के लिए आवश्यक हैं और प्रस्तुत लेख में श्वेताम्बर और दिगम्बर के बीच इसी विवाद की चर्चा की जाएगी । परामर्श (हिन्दी), खण्ड २८, अंक १-४, दिसम्बर २००७ - नवम्बर २००८, प्रकाशन वर्ष अक्तुबर २०१५
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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