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________________ २४ अनेकान्त कुमार जैन आसान नहीं? कानजी स्वामी निश्चय और व्यवहार सम्बन्धी अनेकान्त को बतलाते हुए कहते हैं कि, 'उपादान निमित्त की भांति निश्चय और व्यवहार का भी अनेकान्त स्वरूप है। निश्चय है वह निश्चय रूप से अस्ति रूप है और व्यवहार रूप से नास्ति रूप है; व्यवहार ह वह व्यवहार रूप से अस्ति रूप है और निश्चय रूप से नास्ति रूप है। इस प्रकार कथंचित् परस्पर विरुद्ध दो धर्म होने से वह अनेकान्त स्वरूप है। निश्चय और व्यवहार का एक दूसरे में अभाव है, परस्पर लक्षण भी विरुद्ध है - ऐसा अनेकान्त बतलाता है, तब फिर व्यवहार निश्चय में क्या करेगा? __ वे आगे कहते हैं कि, 'व्यवहार व्यवहार का कार्य करता है और निश्चय का कार्य नहीं करता, अर्थात् व्यवहार बन्धन का कार्य करता है और अबन्धपने का कार्य नहीं करता - ऐसा व्यवहार का अनेकान्त स्वभाव है। इसके बदले 'व्यवहार व्यवहार का भी कार्य करता है और व्यवहार निश्चय का भी कार्य करता है' ऐसा जो मानता है उसने व्यवहार के अनेकान्त रूप को नहीं जाना है किन्तु व्यवहार का एकान्त रूप माना है और जिसने 'व्यवहार करते करते निश्चय का कारण होता है' - ऐसा माना। उसने निश्चय और व्यवहार को पृथक् नहीं जाना किन्तु दोनों को एक ही माना है, इसलिए वह भी एकान्त मान्यता हुई।११। ___ संपूर्ण जिनागम अपेक्षाओं से भरा हुआ है। कहाँ कौन सी बात किस अपेक्षा से कही जा रही है यह समझना बहुत आवश्यक है। इसलिए आचार्यों ने अनेकों प्रकार के नय बताकर व्यवस्था को समझने की प्रथम सलाह दी है ताकि हम प्रत्येक दृष्टि को उसी दृष्टि से समझ सके जिस दृष्टि से वह हमें समझायी जा रही है। धवला में कहा गया है - गत्थि नयहि वीहूणं सूत्त अत्थो व्व जिनवरदम्हि तो णयवादे णिउणा मुणिणो तिद्धतिया होंति १२ अर्थात् जिनेन्द्र भगवान के मत में नयवाद के बिना सूत्र और अर्थ कुछ भी नहीं कहा गया है। इसलिए जो मुनि नयवाद में निपुण होते हैं, वे सच्चे सिद्धान्त के ज्ञाता समझने चाहिए। द्रव्य और पर्याय सम्बन्धी अनेकान्त द्रव्य नित्य है पर्याय अनित्य है अतः नित्यता भी है। जैन दर्शन को नित्यानित्यात्मकता की स्वीकृति ही अनेकान्त है। दार्शनिक दृष्टि से यही अनेकान्त है। किन्तु आध्यात्मिक मापदण्डों पर अनेकान्त किस प्रकार का है? उसी द्रव्य और
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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