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________________ हिन्दी महाकाव्य परम्परा में श्रेष्ठ कृति : 'मूकमाटी' अक्षय कुमार जैन आचार्य श्री विद्यासागरजी के इस महाकाव्य का पारायण मैं कर चुका हूँ और इससे अत्यन्त प्रभावित भी हुआ हूँ। माटी मूक है पर वह तपस्वी आचार्य विद्यासागरजी को किस प्रकार दिखाई देती है और आध्यात्मिक जीवन पर उन्हें लेखनी चलाने को प्रेरित करती है, यह सुखद आश्चर्य की बात है। आचार्यजी के दर्शनों का सौभाग्य कई बार प्राप्त हुआ है। उनकी निर्मल और निरीह स्मिति से अत्यन्त प्रभावित हुआ । आचार्यश्री की आभा का एक कारण यह भी है कि वे अल-छल और आडम्बर से दूर हैं । परम्परा के मुनि मनीषियों केसे जीवन दर्शन को उन्होंने अपनाया है। ___ आचार्य विद्यासागरजी मात्र बाईस वर्ष की आयु में मुनि बन गए थे और छब्बीस वर्ष के होते-होते वे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हो गए थे। इन तपस्वी आचार्य सन्त कवि ने युवावस्था में ही वह अनुभव प्राप्त कर लिया । उनकी अन्य कृतियों में 'मूकमाटी' को मैं सर्वश्रेष्ठ कृति मानता हूँ। माटी है क्या? "...संकोच-शीला/लाजवती लावण्यवती-/सरिता-तट की माटी अपना हृदय खोलती है/माँ धरती के सम्मुख ! 'स्वयं पतिता हूँ/और पातिता हूँ औरों से, "अधम पापियों से/पद-दलिता हूँ माँ' !" (पृ. ४) किन्तु सर्वोच्च विचार इन तीन पंक्तियों में हैं : "सुख-मुक्ता हूँ/दुःख-युक्ता हूँ/तिरस्कृत त्यक्ता हूँ माँ !" (पृ. ४) इस प्रकार माटी की अमर कथा आगे बढ़ती है, और देखिए - 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं।' और आगे माटी शिल्पी के हाथों पहुँचती है । इस प्रकार पिसकर, कुटकर और फिर होता है उसका ‘पुण्य का पालन: पाप-प्रक्षालन' | फिर उसकी अग्नि परीक्षा होती है। कुम्भ के रूप में अवा में रखी जाती है तब ‘अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' बन जाती है। ___ग्रन्थ में धरती की वेदना-व्यथा, शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा साधु के समग्र आचार का बोध भली प्रकार से हो जाता है । वर्तमान में ये महाकाव्य अपने आप में एक ही है । इसकी जैसी ग्रन्थ रचना विरल है । साहित्यप्रेमियों और साहित्यिक मनीषियों में ये समादृत होगा, ऐसा मेरा विश्वास है । हिन्दी महाकाव्य की परम्परा में उनका ये ग्रन्थ 'मूकमाटी' समीक्षकों एवं साहित्य प्रेमियों का कृपा भाजन बना है। ज्यों-ज्यों इसका पठन और अध्ययन होगा त्यों-त्यों उसका समादर बढ़ेगा। आचार्यश्री एवं उनके इस महाकाव्य को प्रणाम। 000 "उत्पापव्यय-प्रौव्यधुक्तमत्सन्तों सेयटन मित्मारैइसमें अनन्तकी अप्तिमा सिमरसी गई + पृ. २४
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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