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________________ 'मूकमाटी' : एक अपूर्व महाकाव्य डॉ. श्रीधर वासुदेव सोहोनी यह एक अपूर्व महाकाव्य है । रचयिता ने अत्यन्त गम्भीर चिन्तन करके उसका निर्माण किया है । प्रत्येक पृष्ठ पर इस प्रदीर्घ और महान् चिन्तन का संस्कार देखने में आता है। उसकी विचार-शृंखला सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति के प्रमुख सिद्धान्तों से सम्बन्धित रही है। ___यह पार्श्वभूमि इस महाकाव्य की ओर, प्रत्येक वाचक का ध्यान केन्द्रित करती हुई दिखाई पड़ती है । उसका जाज्वल्य प्रतिबिम्ब दृग्गोचर होते-होते, वाचक का मन और बुद्धि स्तब्ध-सी हो जाती है; और उसके प्रतिसाद, अपने जीवन में कहाँ-कहाँ मिले थे, उसकी खोज रसिक विद्वान् अनिवार्य रूपेण ही करते होंगे। कवि के साथ, वाचक इस प्रकार एक आत्मीयता के वातावरण में मग्न हो जाते हैं। इस महाकाव्य में रचयिता ने वैदिक पृथ्वीसूक्त में जो विचार प्रकट हुए थे, सम्भवत: उनका परामर्श लिया हो और संस्कृत साहित्य में (वैदिक तथा जैन, दोनों में) भूमि के सम्बन्ध में जो कुछ कल्पनाएँ तथा वाङ्मयीन अलंकार और संकेत मिलते हैं उनका मन्थन करके, उनमें से अपने काव्य सृजन में, अलंकार में रत्नों की तरह प्रयुक्त किए हैं। इस प्रकार हिन्दी वाङ्मय की यह कविता एक विलक्षण गहने के रूप में प्रतीत होती है। वर्तमान युग में भूमि की सम्पदा तथा प्रदूषणों की मानव निर्मित समस्याओं के विषय पर अनेक प्रगतिशील और विकसित देशों में गम्भीर विचार हो रहे हैं। इन विचारों की प्रतिध्वनि भी इस महाकाव्य में कहीं-कहीं अन्तर्गत की हुई दिखाई पड़ती है। श्रीमद् बाणभट्ट के 'शब्द रत्नाकर' में भूमि के छत्तीस नाम दिए हुए हैं : "भूर्भूमिर्वसुधा मही वसुमती विश्वम्भरा मेदिनी। गोत्रा गोर्धरणी समुद्ररशना सर्वसहोर्वी क्षमा ॥ पृथ्वी क्षमा पृथिवी रसा, क्षितिरिलानन्ताचला काश्यपी । क्षोणी ज्या जगती स्थिरा कुरुधनी धात्री धरित्री धरा । वसुन्धरा भूतधात्री सैव सस्यधनोर्वरी। मृत्तिका मृत्प्रशस्तायां मृत्सा मृत्स्ना च मृद्युमे ॥" परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर के इस महाकाव्य में इन सभी नामों का अर्थ लेकर काव्यगुंजन हुआ है, यह विशेष ध्यान देने की परिस्थिति है। उनकी महान् संवेदना का यह ठोस प्रमाण है। काव्य सृजन में संवेदना की शक्ति और प्रखर बुद्धि का सहयोग होने से ही प्रतिभा जाग्रत होती है । इसी प्रकार 'मूकमाटी' महाकाव्य का निर्माण हुआ होगा, ऐसा अनुमान किया जा सकता है । परमपूज्य आदरणीय आचार्यश्री को मेरे सहस्रशः प्रणाम । PADU पृष्ठ ६३ गाँठ सन्धि-स्थान पर -." तुरन्त गाँठ खेल FDMR
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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