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________________ मूकमाटी की मूक व्यथा की सार्थक प्रस्तुति : 'मूकमाटी' महाकाव्य मोदी ताराचन्द जैन 'मूकमाटी' महाकाव्य में धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म के सार को मुक्त छन्दों में निबद्ध करके काव्य रचना को नया स्वरूप प्रदान किया है । इसके वर्णन घटना प्रधान न होकर भाव प्रधान हैं । महाकवि की चिन्तनशील विचारों पर आधारित कथावस्तु पाठक को एक नई दृष्टि प्रदान करती है। प्रस्तुत काव्य चार सर्गों में विभक्त है। यह सर्ग ही हैं खण्ड नहीं क्योंकि स्वयं महाकवि ने काव्य के अन्त में सर्गों का विभाजन निम्न प्रकार किया है : "...कुम्भ का संसर्ग किया/सो/सृजनशील जीवन का/आदिम सर्ग हुआ। ...अहं का उत्सर्ग किया/सो/सृजनशील जीवन का/द्वितीय सर्ग हुआ । ...तुमने अग्नि-परीक्षा दी/उत्साह साहस के साथ/जो/सहन उपसर्ग किया, सो/सृजनशील जीवन का/तृतीय सर्ग हुआ ।/...बिन्दु-मात्र वर्ण-जीवन को तुमने ऊर्ध्वगामी-ऊर्ध्वमुखी/जो/स्वाश्रित विसर्ग किया,/सो सृजनशील जीवन का/अन्तिम सर्ग हुआ।" (पृ. ४८२-४८३) इस प्रकार स्वयं महाकवि ने इसे सर्गों में बाँटकर खण्ड, अध्याय जैसे नामों को कोई स्थान नहीं दिया। 'मूकमाटी' महाकाव्य का प्रारम्भ बिना मंगलाचरण के हुआ है । यद्यपि मंगलाचरण करने की बहुत प्राचीन परम्परा रही है तथा बड़े-बड़े जैनाचार्यों ने इस परम्परा का निर्वाह भी किया है। लेकिन महाकवि स्वयं पंच परमेष्ठियों में से आचार्य परमेष्ठी हैं, जो स्वयं मंगल स्वरूप हैं । अत: स्वयं मंगल स्वरूप होने पर मंगलाचरण का विशेष औचित्य नहीं रहता । सम्भवत: इसीलिए मंगलाचरण करने की परम्परा का निर्वाह नहीं हुआ है। वर्तमान शती में किसी जैनाचार्य द्वारा रचित 'मूकमाटी' हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है। आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज इस महाकाव्य के रचयिता हैं जो परम सन्त हैं तथा सर्वाधिक समादृत दिगम्बर जैनाचार्य हैं। कुछ परीक्षक कह सकते हैं कि यद्यपि संस्कृत ग्रन्थों में महाकाव्य के जो लक्षण लिखे हैं उनमें से बहुत कम लक्षण 'मूकमाटी' में मिलते हैं। सर्ग भी केवल चार हैं तथा छन्द परिवर्तन भी प्रस्तुत महाकाव्य में नहीं हो सका। इसके अतिरिक्त रस एवं अलंकारों की दृष्टि से भी 'मूकमाटी' उतना सफल काव्य नहीं बन सका। लेकिन 'मूकमाटी' तो एक आध्यात्मिक महाकाव्य है । अतः इसमें संस्कृत एवं हिन्दी के महाकाव्यों के लक्षण कहाँ से मिल सकते हैं ? इस महाकाव्य की नायिका मूकमाटी है, जिसे शिल्पी द्वारा नया जन्म प्राप्त होता है । उसकी अग्नि परीक्षा होती है, जिसमें वह खरी उतरती है । महाकाव्य की कथावस्तु तो बहुत संक्षिप्त है, लेकिन दार्शनिक विषयों का वर्णन/प्रतिपादन इसमें सहज ढंग से हुआ है कि दर्शन भी कथा के रूप में हो गया है। वैसे यह कोई राजा अथवा श्रेष्ठी के जीवन को प्रतिपादित करने वाला काव्य नहीं है। यह तो पूरे जैन तत्त्व दर्शन को उजागर करने वाला महाकाव्य है। इसकी एक-एक पंक्ति स्मरण करने योग्य है, मनन करने योग्य है। इस प्रकार के महाकाव्य कोई महान् सन्त ही लिख सकते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में अध्यात्म को आत्मसात् कर लिया हो। ___महाकाव्य की भाषा शुद्ध हिन्दी है तथा भाषा इतनी सरल एवं प्रवाहमय है कि महाकाव्य को यदि मननपूर्वक पढ़ा जावे तो फिर छोड़ने का मन नहीं मानता । प्रारम्भ में कुछ अटपटा-सा अवश्य लगता है कि महाकवि क्या कहना चाहते हैं ? लेकिन जैसे-जैसे हम उसे पढ़ते जाते हैं, महाकाव्य का सार समझ में आने लगता है। मैंने स्वयं महाकाव्य
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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