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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 473 "इस पर्याय की/इति कब होगी ?/इस काया की च्युति कब होगी ?/बता दो, माँ "इसे ।" (पृ. ५) मूकमाटी व्याकुल है आकार पाने, जीवन्त पात्रता पाने । वह अपनी धरती माँ से पद, पथ, पाथेय सभी कुछ चाहती है : "और सुनो,/विलम्ब मत करो/पद दो, पथ दो पाथेय भी दो माँ !" (पृ. ५) यह 'मूकमाटी' महाकाव्य का अथ है। सारा वर्णन महाकाव्य की गरिमा से आलिप्त है । महाकवि आचार्य विद्यासागर इस महाकाव्य में जीवन और मुक्ति, मन और हृदय, साधना और साध्य-सभी कुछ जीवनीय और सांवेदनिक, मर्म तथा धर्म, कर्म और उत्सर्ग एवं उत्कर्ष को साथ ही साथ वर्णित करते हैं। कोई भी जीवन दर्शन गहन साधना, तप और तपश्चर्या, शौच और इन्द्रियनिग्रह के बिना सिद्ध नहीं हो सकता। जीवन की सार्थकता आत्मा पर पड़े कषायों, दोषों, विकारों, दुर्गुणों के आवरण को हटाने में है । व्यक्ति खरा तभी बन पाता है, जब वह साधनों की अग्नि में तप-तपकर राख बन जाए। आचार्य श्री विद्यासागर का कवि कर्म और आचार्यत्व दोनों ही मुझे उनकी इस सूक्ष्मतम सूझबूझ में दृष्टिगोचर होते हैं, जहाँ उन्होंने राख जैसी निकृष्टतम वस्तु होने में खरा (विलोम शब्द) को उत्कर्ष मार्ग के रूप में ढूंढ़ निकाला है । वे कहते हैं : "तन और मन को/तप की आग में/तपा-तपा कर/जला-जला कर राख करना होगा/यतना घोर करना होगा/तभी कहीं चेतन-आत्मा खरा उतरेगा।/खरा शब्द भी स्वयं/विलोम रूप से कह रहा है राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?/रा 'ख'खरा।" (पृ. ५७) महाकाव्य की संरचना महान् आत्मा से परिपूर्ण व्यक्तित्व से ही सम्भव है। 'मूकमाटी' अर्थात् शव को शिव बना सकने का वरदान आचार्यश्री को प्राप्त है । यही महाकाव्य का चमत्कार है। 'मूकमाटी' अवश्य ही पठनीय है। / पृ.४८३ निसर्गसेहीसृजन्यातुकी भांति -मिग-भिल उप पा. तुमने स्वयंको......
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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