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'मूकमाटी' में निहित 'माटी' का स्वरूप
डॉ. विनोद कुमार जैन एवं डॉ. अर्पणा जैन 'आधुनिक हिन्दी निबन्ध' (साहित्य और जीवन, पृ. २५) कृति में भुवनेश्वरीचरण सक्सेना के अनुसार “साहित्य की धारा चिर काल से प्रवाहित होती चली आ रही है, फिर भी यह अद्यतन नवीन है; और इसकी चिर-नवीनता का कारण यह है कि सदैव से ही कवि की प्रतिभा अपनी सूक्ष्म, मौलिक कल्पना के साथ संयुक्त होकर ऐसे काव्यग्रन्थों का सृजन करती रही है, जिनमें साधारण विषय भी न केवल नवीन आयामों से सम्पृक्त हो जाते हैं अपितु अपने भीतर अनेक नवीन उद्भावनाओं की सम्भावना को भी समेटे रहते हैं। वस्तुत: इसी कारण साहित्य की धारा प्रवहमान है। यदि साहित्य में नवीनता का यह प्रयोग रुक गया तो उसका विकास रुक जाएगा और वह मृतप्राय हो जाएगा।" 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी का ऐसा ही महाकाव्य है जो अपने विभिन्न प्रकार के अभिनव प्रयोगों एवं विशेषताओं के कारण आलोचना का प्रमुख केन्द्र बिन्दु बन गया है । इन अभिनव प्रयोगों में से एक है- इसमें निहित 'माटी का स्वरूप' ।
'मूकमाटी' में माटी का सर्वथा नवीन एवं रचनात्मक रूप दिखाई देता है । वस्तुत: इसके पूर्व भी माटी साहित्य का विषय रही है किन्तु स्वतन्त्र सत्ता के रूप में । इसी को विषय बनाकर इतना विशाल ग्रन्थ सम्प्रति नहीं लिखा गया था। कविताओं की रचना अवश्य हुई थी, यथा- शिवमंगल सिंह 'सुमन' द्वारा रचित 'माटी की महिमा' में :
"फसलें उगती, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बार मिटे लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।" ऐसी ही अन्य अनेक छुटपुट कविताएँ हैं, जिनमें माटी का प्रयोग देशप्रेम, देश की एकता अथवा कृषि जैसे पूर्व नियोजित अथवा रूढ़ रूप में किया गया है। वस्तुत: साहित्यकारों ने माटी के प्रति एक प्रतिबद्ध दृष्टिकोण अपनाते हुए उसे इसी रूप में रूढ़ कर दिया था। इस रूढ़ता के आवरण को हटाया है- 'मूकमाटी' के रचयिता आचार्य विद्यासागरजी ने। उन्होंने कम्भकार द्वारा मिटटी का घडा बनाने की छोटी-सी घटना के माध्यम से माटी को विभिन्न अभिनव आयामों से सम्पृक्त किया है।
___ महाकाव्य की इस घटना में माटी एक ऐसी नायिका है जिसे युगों-युगों से अपने प्रियतम की प्रतीक्षा है, क्योंकि उसी का आगमन माटी के स्वरूप को ऐसे नवीन मंगलमय स्वरूप में परिवर्तित कर सकता है जिसकी अभिलाषा में माटी व्याकुल हो रही है । अन्तत: कुम्भकार आता है एवं प्रतीक्षारत अपनी प्रेयसी को उसी मंगलमय रूप अर्थात् कुम्भ में परिवर्तित कर देता है।
__'मूकमाटी' में माटी की उक्त कथा के वर्णन हेतु कवि ने उसके परिशोधन एवं क्रमिक विकास का वर्णन करते हुए उसे विविध मानवीय भावनाओं एवं संवेदनाओं से सम्पृक्त किया है, उसके द्वारा संघर्षमय जीवन का सन्देश दिया है, आस्था के स्वरूप का वर्णन किया है, विविध दार्शनिक सिद्धान्तों की व्याख्या की है एवं सबसे प्रमुख बात तो यह है कि माटी के परिशोधन के माध्यम से मानव के परिशोधन की बात कही है।
महाकाव्य के प्रारम्भ में माटी को एक ऐसी संकोचशीला लाजवती के रूप में प्रस्तुत किया है जो अधम पापियों के द्वारा सतायी गई है तथा विभिन्न प्रकार की यातनाओं को सहते हुए घुटन भरी ज़िन्दगी व्यतीत करने को विवश है।
"स्वयं पतिता हूँ/और पातिता हूँ औरों से, ...अधम पापियों से/पद-दलिता हूँ माँ !" (पृ. ४)