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444 :: मूकमाटी-मीमांसा
" सलिल की अपेक्षा / अनल को बाँधना कठिन है । " (पृ. ४७२) शान्ति को बाँधा जा सकता है । उग्रवाद, आतंकवाद को नहीं बाँधा जा सकता । " पर्त से केन्द्र की ओर / जब मति होने लगती है
अनर्थ से अर्थ की ओर / तब गति होने लगती है।" (पृ. ४७५ )
मन की एकाग्रता तथा एकनिष्ठता ही मानव जीवन के विकास का मूल है। " उपादान - कारण ही / कार्य में ढलता है यह अकाट्य नियम है ।” (पृ. ४८१)
निमित्त कारण की अपेक्षा उपादान कारण कार्य से सीधा सम्बन्ध रखता है । अर्थात् उपादान कारण ही कार्य रूप में परिणत होता है, निमित्त नहीं ।
ऊपर जिन सूक्तियों का विवेचन किया है उनमें अधिकांश सूक्तियाँ वर्तमान मानवीय जीवन से सम्बद्ध हैं । 'मूकमाटी' में नैतिकतावादी, प्रकृतिवादी तथा आधुनिक आतंकवादी परिवेश से जुड़ी सूक्तियों की प्रधानता है । जहाँ रचनाकार ने परम्परागत सूक्तियों को नए सन्दर्भ में प्रयोग करके नए आयाम देने का प्रयास किया है, वहीं नवीन तथा मौलिक सूक्तियों को नितान्त सन्दर्भ सापेक्ष बनाया है। पूर्ण विश्वास है कि ये नवीन सूक्तियाँ मानव जीवन के सभी पक्षों को नए रचनात्मक आयाम प्रदान करेंगी तथा मानव जीवन को मानक, आदर्श तथा नई दिशा प्रदान करेंगी।
पृ. ८
और यह भी देखदलदल में बदल जाती है।
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