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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 443 सज्जन पुरुषों अथवा महापुरुषों द्वारा व्यक्त वाणी से जो आदान-प्रदान होता है, उसका अर्थ एकांगी नहीं है। वह सम्पूर्ण मानवता का सर्वांगीण विकास करती है। महापुरुषों की वाणी में, उनकी सोच में परोपकारी भावना निहित होती है। “संहार की बात मत करो,/संघर्ष करते जाओ ! हार की बात मत करो,/उत्कर्ष करते जाओ !" (पृ. ४३२) संघर्षशील होना । कभी भी विनाश की बात मत सोचो। 'संघर्ष ही जीवन है'- इस सिद्धान्त का पालन करते हुए आगे बढ़ते जाओ । प्रयास करते चलो, हार की बात मत सोचो । “पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु/पर को पद-दलित करते हैं, पाप-पाखण्ड करते हैं।" (पृ. ४३४) स्वार्थपरता । जिनके पास मान है, पद है, वे ही पद पाने की लालसा में दूसरों को कुचलते हैं। उसमें उनका स्वार्थ निहित होता है। ऐसे ही लालसा वाले पाप को जन्म देते हैं, पाखण्ड करते हैं जो स्वस्थ एवं आदर्श समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। "कई सूक्तियाँ/प्रेरणा देती पंक्तियाँ कई उदाहरण-दृष्टान्त/नयी पुरानी दृष्टियाँ ।” (पृ.४७३) ___ महापुरुषों की वाणी चाहे पुरातन हों अथवा नवीन हों, वे समाज के लिए प्रेरणा होती हैं। देखने से ये मात्र पंक्तियाँ ही दृष्टिगोचर होती हैं। इनके द्वारा जो उदाहरण- दृष्टान्त दिए गए होते हैं, वे समाज के लिए वरदान सिद्ध होते हैं। उन्हीं के आधार पर आधुनिक समाज की कल्पना की जाती है। "जब तक जीवित है आतंकवाद शान्ति का श्वास ले नहीं सकती/धरती यह।" (पृ. ४४१) विद्वान् आचार्यजी ने इन पंक्तियों में वर्तमान की विकट, ज्वलन्त समस्या आतंकवाद को विश्लेषित किया है, जो कि एक सूक्ति का रूप धारण कर सम्मुख है। उन्होंने सही लिखा है कि जब तक आतंकवाद इस पृथ्वी पर रहेगा तब तक यहाँ के मानव शान्ति की साँस नहीं ले सकते, और यदि शान्ति नहीं होगी तो प्रगति नहीं होगी अपितु विनाश की ओर ही अग्रसर होता रहेगा। यह आतंकवाद भारत ही नहीं, आज सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है। भारत में इसका उग्र रूप है, क्योंकि इसके अनेक प्रान्तों में यह आग लगी हुई है। "जो/निश्छलों से छल करते हैं जल-देवता से भी जला करते हैं।” (पृ. ४४७) जो व्यक्ति निश्छलों से अर्थात् साधारण मानव से छल-कपट करते हैं, उनका इस प्रकृति में कोई स्थान नहीं है। जल, जिसकी प्रकृति शान्त होती है, जीवन देता है । वह भी उसको शान्ति नहीं दे सकता । ऐसे मानव से वह भी खिन्न रहता है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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