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________________ 442 :: मूकमाटी-मीमांसा “मन-वांछित फल मिलना ही/उद्यम की सीमा मानी है।" (पृ. २८४) कार्यसिद्धि होना । आशातीत फल प्राप्त हो जाने से उद्यमी का प्रयत्न सफल हो जाता है । यही उसकी सीमा है, लक्ष्य है, ध्येय है। "बिना सन्तोष, जीवन सदोष है।" (पृ.३३९) ___ सन्तुष्ट होना । प्रत्येक मानव को अपने कार्यों से सन्तुष्टि प्राप्ति होना उसके जीवन को सफल मानना है । यदि वह सन्तुष्ट नहीं होता तो उसका जीवन दोषी है, निर्दोष नहीं है। "सन्त-समागम की यही तो सार्थकता है संसार का अन्त दिखने लगता है।" (पृ. ३५२) सज्जनों की संगत से साधक संसार की अनित्यता तथा नश्वरता को जान जाता है। "फूंक मारने से मशाल बुझ नहीं सकता बुझाने वाले का जीवन ही बुझ सकता है।" (पृ. ३६९) यदि कोई मानव अपने हित के लिए दूसरों का विनाश करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है तो वह दूसरों का कुछ नहीं कर सकता अपितु उसका जीवन ही विनष्ट हो जाएगा। परहित अथवा जनहित में अपना जीवन सफल हो जाता है। "ध्येय यदि चंचल होगा, तो/कुशल ध्याता का शान्त मन भी चंचल हो उठेगा ही।" (पृ. ३६९) लक्ष्य की निश्चितता ही प्रयत्न तथा साधनों के प्रयोग की सफलता है। “आधार का हिलना ही/आधेय का हिलना है।" (पृ. ३७९) आधेय का अस्तित्व आधार पर अवलम्बित है। "प्रीति बिना रीति नहीं/और/रीति बिना गीत नहीं ।” (पृ. ३९१) प्रेम से व्यवहार तथा आचरण की पवित्रता प्राप्त होती है तथा उससे जीवन में माधुर्य, सम्पन्नता तथा समृद्धि प्राप्त होती है। "प्रकृति का प्रेम पाये बिना/पुरुष का पुरुषार्थ फलता नहीं।” (पृ. ३९५) पुरुष का पौरुष प्रकृति के अनुकूल चलने में ही सार्थक सिद्ध होता है, अर्थात् प्रकृति की अनुकूलता ही जीवन है और प्रकृति की प्रतिकूलता ही मृत्यु है। "सत्पुरुषों से मिलने वाला/वचन-व्यापार का प्रयोजन परहित-सम्पादन है।” (पृ. ४०२)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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