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________________ 438 :: मूकमाटी-मीमांसा "असत्य की सही पहचान ही/सत्य का अवधान है।" (पृ.९) विवेक के साथ असत्य को जान लेना ही सत्य के मूल तक पहुँचना है। सत्य तथा असत्य एक ही तत्त्व के दो पक्ष हैं। दोनों एक-दूसरे पर आश्रित हैं। दोनों की सापेक्ष सत्ता है, निरपेक्ष नहीं। "आस्था के बिना रास्ता नहीं/मूल के बिना चूल नहीं।" (पृ. १०) बिना आस्था असफल होना । जब तक व्यक्ति किसी विशेष कार्य की आस्था मस्तिष्क में नहीं रखता तब तक उसका मार्ग प्रशस्त नहीं होता। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार जड़ के बिना चेतनता नहीं आती। "यह मुड़न-जुड़न की क्रिया,/हे आर्य ! कार्य की निष्पत्ति तक/अनिवार्य होती है..!" (पृ. २९) समाज एक समझौता है। इस समाज में जब तक आपसी समझौता नहीं हो, तब तक कार्य-सिद्धि प्राप्त नहीं होती। "पर की दया करने से/स्व की याद आती है।" (पृ.३८) परोपकारियों को दूसरों के कार्य के प्रति सहयोग करने से ही स्वयं को जो सन्तुष्टि मिलती है, वही अपने आपको गौरवान्वित होना है। ___ "स्व की याद ही/स्व-दया है।" (पृ. ३८) आत्मस्मृति अथवा आत्मसाक्षात्कार ही सही अर्थों में मानवीय करुणा है । यह हृदय की उदार तथा सात्त्विक वृत्ति है। "वासना का विलास/मोह है,/दया का विकास/मोक्ष है।" (पृ. ३८) वासना को विलासिता के रूप में भोगना ही मोह है, जो कि एक आदर्श मानव के लिए उचित नहीं है । दया का विकास होना मोक्ष है, जो कि मानव की प्रगति का प्रवर्तक है । अर्थात् मानव को परोपकारी होना चाहिए और मोह से जीवनपर्यन्त बचना ही श्रेयस्कर है। "वासना की जीवन-परिधि/अचेतन है "तन है दया-करुणा निरवधि है।" (पृ. ३९) वासना का क्षेत्र संज्ञा शून्य है, देह है। इसको महत्त्व देना हानिकारक है । दया और करुणा के क्षेत्र को मापा नहीं जा सकता, यह चिरन्तन है। "लघुता का त्यजन ही/गुरुता का यजन ही/शुभ का सृजन है।" (पृ. ५१) तुच्छ को त्याग देना अर्थात् मूरों की संगति स्वीकार नहीं करनी चाहिए। महापुरुषों की आराधना करना, सत्संगति में सम्मिलित होना, शुभ, कल्याण, प्रगति का सृजन है । इसी से मानव का कल्याण सम्भव है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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