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मूकमाटी-मीमांसा :: 437 होता है । "दाँत मिले तो चने नहीं,/चने मिले तो दाँत नहीं,
और दोनों मिले तो"/पचाने को आँत नहीं ...!" (पृ. ३१८) समय की महत्ता । पूर्वजों ने 'समय' को बलवान् भी कहा है । यदि समय पर आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है तो जीवन-पर्यन्त पश्चाताप करना पड़ता है।
"माटी, पानी और हवा/सौ रोगों की एक दवा।" (पृ. ३९९) स्वस्थ स्वास्थ्य । हमारे शरीर में मिट्टी, पानी और वायु का विशेष महत्त्व होता है। यदि इनमें से किसी की भी कमी हो जाती है तो शरीर में विकार हो जाता है। आर्य समाज तथा अन्य संस्थाओं ने इस आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दिया है। व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। इसमें भी तीनों का समावेश है। यदि इन तीनों का आवश्यकतानुसार शरीर में योग रहता है तो वे सहस्र रोगों में औषधि का कार्य करते हैं।
"बहता पानी और रमता जोगी।" (पृ. ४४८) परिवर्तनशीलता । प्रकृति ने भी इस सिद्धान्त को सुचारु रूप से क्रियान्वित किया है। कभी ग्रीष्म ऋतु, कभी शरद ऋतु तो कभी वर्षा ऋतु । इसी प्रकार जितना बहते हुए जल का महत्त्व है, उतना रुके जल का नहीं और योगी महापुरुष रमता हुआ ही शोभा देता है। उसी योग साधना की क्रिया से ही तो योगी>जोगी नाम पड़ा है।
"बिन माँगे मोती मिले/माँगे मिले न भीख ।” (पृ. ४५४) इच्छा न होने पर वस्तु प्राप्ति तथा इच्छा होने पर भी तुच्छ से तुच्छ वस्तु प्राप्त न होना । यह सूक्ति सांसारिक प्रवृत्ति से प्रभावित है । अनिच्छा होने पर कोई भी बहुमूल्य वस्तु प्राप्त हो जाती है किन्तु यदि तुच्छ से तुच्छ वस्तु को माँगा जाय तो वह भी उस समय नहीं मिल पाती।
"चोर इतने पापी नहीं होते/जितने कि
चोरों को पैदा करने वाले ।” (पृ. ४६८) समाज में चोरों को पैदा करने वाले समाज के लिए दोषी हैं । यहाँ रचनाकार ने समाज व्यवस्था पर चोट की है। यदि कुछ लोग अपराधीकरण या असामाजिकीकरण की ओर बढ़ते हैं तो ये दुष्प्रवत्तियाँ उनके जीवन में परम्परागत सड़ी-गली समाज व्यवस्था से ही उत्पन्न होती हैं। इसी के प्रक्षालन तथा परिष्कार की आवश्यकता है। मौलिक सूक्तियाँ : जो सूक्तियाँ मूल रूप में प्रयुक्त की गई हैं, जिनका निर्माण, प्रयोग आचार्यजी ने स्वयं किया है। ये सूक्तियाँ भी आम जीवन से प्रभावित मानवीय मूल्यों पर अवलम्बित हैं । लेखक ने परम्परागत सूक्तियों की अपेक्षा मौलिक सूक्तियों का अधिक प्रयोग किया है । सूक्तियों के निर्माण, प्रयोग में विद्वान् लेखक ने अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है। इनकी प्रमुख मौलिक सूक्तियाँ निम्न प्रकार से समायोजित की गई हैं :
“सत्ता शाश्वत होती है।" (पृ. ७) ___व्यवस्था चिरन्तन है । वस्तुतः सत्ता का अर्थ अस्तित्व से है । प्रकृति तथा समाज का अस्तित्व चिरन्तन है । कोई भी परिवर्तन इसकी दिशा को बदल सकता है, लेकिन इसके अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकता।