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मूकमाटी-मीमांसा :: 435
विद्यमान जीव-जन्तु भी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं, रहते हैं।
"अहिंसा ही जीवन है...।" (पृ. ६४) इस सूक्ति का प्रयोग भगवान् महावीर, महात्मा बुद्ध के समय में भी प्रचलित था। सम्राट अशोक ने भी इसका पालन किया । आधुनिक काल में स्वतन्त्रता के समय महात्मा गाँधी ने प्रयोग किया था। इसका अर्थ है कि मानवीय जीवन में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, क्योंकि यदि हिंसा का आश्रय लिया गया तो फिर भी सामान्य स्थिति पर आना पड़ता है । इसलिए सामान्य स्थिति को अपनाकर जीवन को सार्थक बनाना उचित है । इस सूक्ति को जैन धर्म अभी भी समाहित किए हुए है।
"धम्मो दया-विसुद्धो।” (पृ. ७०)
तथा
__धम्म सरणं गच्छामि।" (पृ. ७०) धर्म ही पवित्रतम करुणा अथवा दया है। इसलिए सात्त्विक, पवित्र तथा उदार विचारों वाले व्यक्ति को धर्म का आचरण करना चाहिए। यह नैतिकतावादी सूक्ति है।
"मुंह में राम/बगल में छुरी।" (पृ. ७२)
दोहरी नीति । या ऐसे कहिए-कथनी और करनी में अन्तर । मनुष्य यदि किसी के साथ कहता कुछ है और करता कुछ और, तो वह विश्वासघाती होता है, जो मानवीय मूल्यों के समाप्तीकरण की प्रक्रिया है।
“दया-धर्म का मूल है।" (पृ. ७३) भारतीय संस्कृति के सभी धर्मों का आधार है- जीवों पर दया करना । अर्थात् धर्म का मूल दया में निहित है। दया करना मानव को स्वयं उच्च स्थान प्राप्त करना है, क्योंकि बदले की भावना से कार्य करना सभी के हितों पर कुठाराघात है।
“धम्म सरणं पव्वज्जामि।” (पृ. ७५) ____ व्यक्ति भौतिकवादी जीवन मूल्यों से विरक्त होकर प्रवज्या ग्रहण करके सच्चे अर्थों में धर्म का आचरण करता है । ऐसा व्यक्ति ही धर्मनिष्ठ माना जाता है । यह सूक्ति भी भारतीय संस्कृति के नैतिकवादी मूल्यों पर आधारित है।
“वसुधैव कुटुम्बकम् ।” (पृ. ८२) ___ सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार है। यह मान्यता भारतीय संस्कृति का मूल बिन्दु रही है। भारतीय संस्कृति में अन्तरराष्ट्रवाद तथा मानवतावाद निहित है। यह सूक्ति इन्हीं मूल्यों का निदर्शन है।
"अच्छा, बुरा तो/अपना मन होता है।" (पृ. १०८) अपनी इच्छा शक्ति । अपने मन में जैसे विचार सोचे जाते हैं वैसे ही कार्य की परिणति होती है, क्योंकि मन अपना होता है। इसी सन्दर्भ में तुलसीदासजी ने कहा है : “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।" इसी