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________________ 'मूकमाटी' महाकाव्य में प्रयुक्त प्रमुख सूक्तियों का मूल्यांकन ___डॉ. सतीराम सिंह 'सरस' आचार्य श्री विद्यासागर द्वारा विरचित 'मूकमाटी' महाकाव्य हिन्दी साहित्य की अनुपम कृति है। आचार्यजी ने एक ऐसे कथ्य को प्रस्तुत किया है, जो आदिकाल से लगभग उपेक्षित रहा है। आम जीवन में शान्त रूप में माटी पर अच्छे-अच्छे विद्वान् लेखक अपनी लेखनी से माटी को प्रमुख कथ्य के रूप में व्यक्त करने की ओर दृष्टि नहीं डाल सके। आचार्यजी ने स्थान-स्थान पर माटी की महत्ता को बल दिया है । यह एक महान् परम्परा को स्थापित करता है। __ आचार्यजी ने इस महाकाव्य द्वारा भारतीय सभ्यता, संस्कृति जो हमारे पूर्वजों से हमें विरासत में मिली है, को शाश्वत जारी रखते हुए स्थापित करने का सफल प्रयत्न किया है। इसमें सन्देह नहीं कि यह कृति आधुनिक काल की एक महानतम उपलब्धि है। 'मूकमाटी' महाकाव्य में विद्वान् लेखक ने मानवीय जीवन के सभी पहलुओं पर दृष्टिपात किया सूक्तियों को 'सूत्र वाक्य' भी कहा गया है। जिस प्रकार विज्ञान, गणित आदि में सूत्र (फार्मूला) होते हैं, ठीक उसी प्रकार ये मानवीय मल्यों पर आधारित सत्र वाक्य हैं। 'मूकमाटी' महाकाव्य में प्रयुक्त सूक्तियों को मुख्यत: दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है : १. परम्परागत सूक्तियाँ २. मौलिक सूक्तियाँ परम्परागत सूक्तियाँ : इस श्रेणी में उन सूक्तियों को रखा गया है, जो हमें पूर्वजों से विरासत में मिली हैं। इन सूक्तियों का मानवीय जीवन में अत्यधिक महत्त्व है । ये सूक्तियाँ मानवीय मूल्यों पर आधारित हैं। इन सूक्तियों के पीछे सूक्ति प्रयोक्ता का कथ्य छिपा रहता है । इस प्रकार की सूक्तियाँ कम मात्रा में प्रयोग की गई हैं। _ 'मूकमाटी' महाकाव्य में इस श्रेणी की प्रमुख सूक्तियों को यहाँ स्पष्ट किया जा रहा है : "पूत का लक्षण पालने में।" (पृ. १४ एवं ४८२) इसका अभिप्राय है भविष्य में क्या होगा, उसका ज्ञात होना है। इस सूक्ति से स्पष्ट है कि भविष्य के प्रति मानव को कितना आस्थावान् होना चाहिए। वैसे भी आवश्यक है कि भविष्य की योजना बनाना, भविष्य के प्रति सचेत रहना मानव का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है । ऐसी ही आचार्यजी ने मौलिक सूक्ति प्रयोग की है : 0 "आस्था के बिना रास्ता नहीं/मूल के.बिना चूल नहीं।" (पृ. १०) "बायें हिरण/दायें जाय-/लंका जीत/राम घर आय।" (पृ. २५) ऐसी सूक्ति में किसी कार्य करने से पूर्व कार्य की सफलता-असफलता की आस्था रहती है । यह शकुनअपशकुन पर आधारित है । शकुन-अपशकुन प्रवृत्ति को भारतीय संस्कृति में अत्यधिक बल मिला है । जब से आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण का प्रभाव पड़ा है, तब से यह प्रवृत्ति समाप्त हो रही है। इसका अर्थ है किसी कार्य करने से पूर्व अथवा यात्रा में जाते समय हिरण अथवा शुभ पक्षी मोर आदि बायीं दिशा से दाहिनी दिशा की ओर मनुष्य से पूर्व निकल जाए, तो सफलता निश्चित मिलेगी। "परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।” (पृ. ४१) मानवीय समाज में रहने वाले प्राणी परस्पर सम्बद्ध हैं। इतना ही नहीं, मानव जीवन के अतिरिक्त प्रकृति में
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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