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________________ 404 :: मूकमाटी-मीमांसा नहीं करता, इतना निष्ठुर है । ये दोनों तत्त्व समाज के दो वर्गों के प्रतीक हैं। जिनके हृदय में लघु मानव के प्रति सहानुभूति नहीं है, दूसरों के दुःख-दर्द देखकर जिन्हें दया नहीं आती ऐसे निष्ठुर लोगों को कवि ने फटकारा है : "दूसरों का दुःख-दर्द/देखकर भी/नहीं आ सकता कभी जिसे पसीना/है ऐसा तुम्हारा/ "सीना।" (पृ. ५०) महाकाव्यों की यह परम्परा रही है कि उसके पात्र जग प्रसिद्ध, धीरोदात्त और ऐतिहासिक रहे हैं। इसी प्रकार पशु-पक्षियों का भी कहीं वर्णन हुआ है तो वह सुन्दर,शक्तिशाली और लोकप्रिय पशु रहा है । चाहे वह हिरण हो या शेर, मयूर हो या कोयल कवियों के प्रिय रहे हैं। इसके विपरीत विद्यासागरजी उन पशुओं का वर्णन करते हैं जो सदियों से मानव की सेवा करते रहे हैं, उनका बोझ ढोते रहे हैं और बदले में मूर्खता की उपाधि ही पाते रहे हैं । सामाजिक शब्दावली में 'गदहा' एक गाली बन चुका है, उसी पद दलित और उपेक्षित पशु के प्रति कवि के भाव हैं : "मेरा नाम सार्थक हो प्रभो !/यानी/'गद' का अर्थ है रोग 'हा' का अर्थ है हारक/मैं सबके रोगों का हन्ता बन/"बस, और कुछ वांछा नहीं/गदहा"गद-हा"!" (पृ. ४०) ___मात्र शाब्दिक चमत्कार उत्पन्न करना कवि का प्रतिपाद्य नहीं है । वस्तुओं को देखने की यह दृष्टि उनके सामाजिक सोच को दर्शाती है। राजनैतिक परिदृश्य ___जब देश आजाद हुआ तो हमें प्रजातन्त्र से काफी उम्मीदें थीं। यह स्वाभाविक भी है कि जिनकी तक़दीर शताब्दियों तक दूसरे के आदेशों से संचालित होती रही उन्हें प्रजातन्त्र में अपनी किस्मत का फैसला करने का अधिकार मिला, यह उनके लिए सौभाग्य की बात है लेकिन उनसे भी शीघ्र ही मोहभंग हो गया । कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने महसूस किया कि सत्य का फैसला कभी भी भीड़ द्वारा नहीं हो सकता । 'मूकमाटी' का रचनाकार भी अपनी इस अनुभूति को नदी के माध्यम से व्यक्त करता है : "भीड़ की पीठ पर बैठकर/क्या सत्य की यात्रा होगी अब ! नहीं"नहीं, कभी नहीं।" (पृ. ४७०) बहुदल प्रणाली प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को स्वस्थ रूप प्रदान करने के उद्देश्य से लागू की गई लेकिन उसने विचारों की विविधता के कारण अनेक समस्याओं को उत्पन्न किया । इस दिशा में कवि का संकेत द्रष्टव्य है: "दल-बहुलता शान्ति की हननी है ना !/जितने विचार, उतने प्रचार उतनी चाल-ढाल/हाला घुली जल-ता/क्लान्ति की जननी है ना!" (पृ. १९७) _____ राजनीतिक दल देश के विकास को भूलकर स्वार्थसिद्धि में संलग्न हो गए। उनके विचार और वादे सैद्धान्तिक ही रहे, व्यवहार में उनका पालन दुर्लभता से दिखाई देने लगा। लोग या तो पैसा कमाने के उद्देश्य से या ख्याति प्राप्त करने के लिए किसी कार्य को करते हैं। नि:स्वार्थ सेवा समाप्त हो गई, जिससे देश को बड़ी-बड़ी हानियों का सामना करना पड़ रहा है:
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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