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'मूकमाटी': आधुनिक परिवेश की जीवन्त अभिव्यक्ति
डॉ. के. आर. मगरदे समकालीन कविता में कविता का प्रबन्धात्मक स्वरूप दुर्लभता से दिखाई देता है, क्योंकि प्रबन्धात्मकता के अपने खतरे हैं। आज का युग विशेषज्ञता का युग है-चिन्तन के क्षेत्र में भी और कविता के क्षेत्र में भी, यद्यपि किसी बिन्दु विशेष को लेकर चिन्तन के क्षेत्र में चरम स्तर तक पहुँचना समकालीन कवियों की विशेषता रही है । इसी कारण वे अपने पूर्ववर्ती कवियों से आगे भी पहुंचे हैं, किन्तु विचारों की एकांगिता के कारण वे प्रबन्ध काव्य लिखने का साहस नहीं कर सके। विचारों की व्यापकता, गहनता और उत्कृष्टता के कारण 'मूकमाटी' ने समकालीन कविता में महाकाव्यात्मक स्वरूप को प्रतिष्ठित किया।
___ 'मूकमाटी' एक प्रतीकात्मक महाकाव्य है पर इसमें न तो पारम्परिक धीरोदात्त पात्रों की सृष्टि की है, न ऐतिहासिक घटनाओं का सृजन बल्कि नूतन पात्र सृष्टि और नूतन घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए दर्शन की गूढता को सादगीपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया है। साथ ही प्रतीकों और संकेतों के माध्यम से समकालीन परिवेश को भी उद्घाटित किया है। इसके पात्र मानव भले ही न हों लेकिन वे गहन मानवीय संवेदना से परिपूर्ण हैं।
युग का इतिहास आज जिस मोड़ पर खड़ा है वहाँ मनुष्य अपनी माटी से दूर होता जा रहा है । ऐसे समय में दुःखी, दरिद्र और असहाय लोगों का प्रतीक बनाकर 'मूकमाटी' का रचा जाना अत्यन्त प्रासंगिक है । जो वस्तु हमारे जीवन और संस्कृति के सूक्ष्म स्पन्दनों से सम्पृक्त है, उसके लिए माटी से बढ़कर दूसरा कोई प्रतीक सम्भव भी नहीं है। यहाँ माटी मूक होते हुए भी बहुत कुछ बोल रही है। लघुत्व के प्रति आस्था
'मूकमाटी' का लक्षित व्यक्ति लघु मानव है। इस लघु मानव को सदियों से पद दलित किया गया तथा उपेक्षा और भेदभाव की दृष्टि से देखा गया, ठीक माटी की तरह । वह सन्त्रस्त परिस्थितियों को भोग रहा है। उसके मन में दर्द है, संशय है, कुण्ठा है किन्तु विश्वास है कि वह परिस्थितियों पर विजय अवश्य प्राप्त कर लेगा। समाज के तथाकथित अमीर और बड़े कहलाने वाले व्यक्तियों के प्रति कवि में तीव्र रोष है और गरीब तथा लघु मानव के प्रति आत्मीयता के भाव पूरे महाकाव्य में विद्यमान हैं। प्रारम्भ में ही वे घोषणा करते हुए कहते हैं :
“अमीरों की नहीं/गरीबों की बात है;
कोठी की नहीं/कुटिया की बात है।" (पृ. ३२) जब कभी छोटी जाति, छोटे मनुष्य की बात कहने का अवसर मिला है, कवि वहाँ रम गए हैं । लघुत्व की बात करते हुए उनकी शैली में निखार उत्पन्न होता है । 'मूकमाटी' का शिल्पी कहता है :
"मृदु माटी से/लघु जाति से/मेरा यह शिल्प/निखरता है
और/सर-काठी से/गुरु जाति से/वह अविलम्ब/बिखरता है।" (पृ. ४५) मिट्टी और कंकड़ धरती के दो तत्त्व हैं। माटी में मृदुता है, नमी है, जल धारण करने की क्षमता है, शालीनता है और उर्वरापन है जबकि कंकड़ में कठोरता है। वह माटी में मिल नहीं सकता, पीसने पर भी अपने गुण धर्म को छोड़ नहीं सकता अपितु रेतीला बन जाता है लेकिन माटी नहीं बनता। युगों-युगों तक जलाशय में रहकर भी जल को धारण