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मूकमाटी-मीमांसा :: 401 "आदर्श में अपना मुख दिखा/विमुख हुआ जो आदर्श जीवन से।" (पृ. ३२१) विराग का भाव जागृत होने पर उदासीन सेठ खाली मन से घर लौट रहा है। अनेक उपमाओं द्वारा उसका चित्र खींचा है:
0 "जल के अभाव में लाघव/गर्जन-गौरव-शून्य/वर्षा के बाद मौन
कान्तिहीन-बादलों की भाँति/छोटा-सा उदासीन मुख ले घर की ओर जा रहा सेठ"।" (पृ. ३४९) "मूल-धन से हाथ धो कर/खाली हाथ घर लौटते भविष्य के विषय में चिन्तित/किंकर्तव्यविमूढ़ वणिक-सम घर की ओर जा रहा सेठ ।" (पृ. ३५०) "माँ के विरह से पीड़ित/रह-रह कर/सिसकते शिशु की तरह दीर्घ-श्वास लेता हुआ/घर की ओर जा रहा सेठ"।" (पृ. ३५०-३५१) "प्राची की गोद से उछला/फिर/अस्ताचल की ओर ढला प्रकाश-पुंज प्रभाकर-सम/ आगामी अन्धकार से भयभीत
घर की ओर जा रहा सेठ"।" (पृ. ३५१) __ "शान्त-रस से विरहित कविता-सम/पंछी की चहक से वंचित प्रभात-सम
शीतल चन्द्रिका से रहित रात-सम/और/बिन्दी से विकल
अबला के भाल सम/...घर आ पहुँचता है सेठ'!" (पृ. ३५१-३५२) धीर गम्भीर नदी को चिरदीक्षिता आर्यिका से उपमित किया है :
"तरल-तरंगों से रहित/धीर गम्भीर हो बहने लगी, हाव-भावों-विभावों से मुक्त/गत-वयना नत-नयना
चिर-दीक्षिता आर्या-सी!" (पृ. ४५५) कुम्भ नदी को पारकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी के समान प्रसन्न है :
"कुम्भ के मुख पर प्रसन्नता है/प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण
परिश्रमी विनयशील/विलक्षण विद्यार्थी-सम ।" (पृ. ४५५) अतुकान्त होने पर भी समग्र कविता में एक लयात्मकता है और नाद सौन्दर्य भी :
0 "मृदु माटी से/लघु जाति से/मेरा यह शिल्प/निखरता है
और/खर-काठी से/गुरु जाति से/वह अविलम्ब/बिखरता है।" (पृ. ४५) . "वेतन वाले वतन की ओर/कम ध्यान दे पाते हैं और
___चेतन वाले तन की ओर/कब ध्यान दे पाते हैं ?" (पृ. १२३) शब्दों के नए प्रयोग किए हैं। पलक संज्ञा का क्रिया रूप में प्रयोग है : “शिल्पी की आँखें पलकती नहीं हैं" (पृ. १६५)।