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________________ 400 :: मूकमाटी-मीमांसा सभंग यमक के उदाहरण स्वरूप 'किसलय' का भिन्न अर्थ में प्रयोग हुआ है : "किसलय ये किसलिए/किस लय में गीत गाते हैं ? ...अन्त-अन्त में श्वास इनके/किस लय में रीत जाते हैं ?" (पृ. १४१-१४२) एक और उदाहरण जहाँ बदली' शब्द में यमक है : "तीनों बदली ये बदली।" (पृ. २०७) अर्थात् तीनों बदलियाँ बदल गई। साथ ही, स्त्री को देहमात्र समझते हैं जो, उनके प्रति कथन है कि स्त्री मात्र देह नहीं है वह कुछ और भी है। उसकी तरफ दृष्टि डालें: "मैं अंगना हूँ/परन्तु,/मात्र अंग ना हूँ...!" (पृ. २०७) यमक का एक उदाहरण और : “अवसर से काम ले/अब, सर से काम ले !" (पृ. २३१) धी-रता और धीरता, साथ ही काय-रता व कायरता में अर्थ वैभिन्न द्रष्टव्य है : "धी-रता ही वृत्ति वह/धरती की धीरता है/और कार्य-रता की वृत्ति वह/जलधि की कायरता है।" (पृ. २३३) परखो का तीन बार अलग-अलग अर्थों में प्रयोग है : "किसी विध मन में/मत पाप रखो, पर, खो उसे पल-भर/परखो पाप को भी।" (पृ. १२४) मित्रों से मिली मदद वस्तुत: अहंकार देने वाली होती है : "मित्रों से मिली मदद/यथार्थ में मद-द होती है।" (पृ. ४५९) ऐसे यमकों से सम्पूर्ण काव्य भरा पड़ा है। श्लेषानुप्राणित विरोधाभास का उदाहरण-दूरज और सूरज में आपाततः विरोध प्रतीत होता है । दूरज में श्लेष है- दुः+रज व दूर+ज । "दूरज होकर भी/स्वयं रजविहीन सूरज ही सहस्रों करों को फैलाकर/सुकोमल किरणांगुलियों से नीरज की बन्द पाँखुरियों-सी/शिल्पी की पलकों को सहलाता है।" (पृ. २६५) जो आदर्श जीवन से विमुख हो गया है, उसे अपना मुख आदर्श में दिखा । यहाँ भी श्लेषानुप्राणित विरोधाभास है। जो विमुख है, उसे मुख कैसे दिख सकता है । वह भी आदर्श से विमुख होने पर आदर्श में ही। आदर्श के श्लेष पर यह आधारित है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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