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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 393 "कर्तृत्व-बुद्धि से/मुड़ गया है वह/और/कर्तव्य-बुद्धि से जुड़ गया है वह।" (पृ. २८-२९) संसार जीवन के निर्वाह के लिए नहीं, निर्माण के लिए है : “यहाँ पर/जीवन का निर्वाह' नहीं/'निर्माण' होता है।" (पृ. ४३) स्वभाव धर्म है तो विभाव विकृति । जल जीवनदाता है, जल की विकृति है हिम-जीवनध्वंसी : "जल जीवन देता है/हिम जीवन लेता है, स्वभाव और विभाव में/यही अन्तर है।" (पृ. ५४) धर्म की ओट में हिंसा और शास्त्र से शस्त्र का कार्य लेना अवसरवाद की उपज है । यह अवसरवादिता धर्म के प्रति अनास्था उत्पन्न करती है : “धर्म का झण्डा भी/डण्डा बन जाता है शास्त्र शस्त्र बन जाता है/अवसर पाकर।" (पृ. ७३) इसमें राजनेताओं को संकेत है कि राजमुकुट फूलों की सेज न होकर काँटों की शय्या होना चाहिए, अन्यथा राजसत्ता राजस-ता हो जाती है : "घन-घमण्ड से भरे हुओं/की उद्दण्डता दूर करने दण्ड-संहिता की व्यवस्था होती है/और शास्ता की/शासन-शय्या फूलवती नहीं/शूल शीला हो, अन्यथा,/राजसत्ता वह रासज-ता की रानी-राजधानी बनेगी!" (पृ. १०४) आज साहित्य जगत् में जो लम्बी-चौड़ी व्याख्याएँ मिलती हैं, जिनमें शब्दों की चकाचौंध से यथार्थ छिप जाता है। आम पाठक सम्भ्रमित हो जाता है । इसे कम किन्तु सशक्त शब्दों में व्यक्त किया है : "लम्बी, गगन चूमती व्याख्या से/मूल का मूल्य कम होता है सही मूल्यांकन गुम होता है ।" (पृ. १०९) जिसे रूप की प्यास है, वही जड़ शृंगारों में मग्न रहता है और जिसे अरूप की आस लगी हो ? "जिसे रूप की प्यास नहीं है,/अरूप की आस लगी हो उसे क्या प्रयोजन जड़ शृंगारों से !" (पृ. १३९) धर्म के क्षेत्र में आज क्या स्थिति है ? धर्म के पावन पथ पर दूब उग आई है क्यों ? क्योंकि : "केवल कथनी में करुणा रस घोल/धर्मामृत-वर्षा करने वालों की भीड़ के कारण!" (पृ. १५२)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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