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394 :: मूकमाटी-मीमांसा आज के पथ प्रदर्शकों की दशा का चित्रण भी अवलोकनीय है :
“वह स्वयं पथ पर चलना चाहता नहीं,
औरों को चलाना चाहता है।" (पृ. १५२) कवि का जीवन दर्शन साहित्य रसों की चर्चा में मुखरित हुआ है । करुणा जीवन का प्राण समीरधर्मी है । वात्सल्य जीवन का त्राण धवलिम नीरधर्मी है परन्तु शान्त रस जीवन का गान मधुरिम क्षीरधर्मी है । करुणा भी उदात्त भावना है :
"दया-करुणा निरवधि है/करुणा का केन्द्र वह संवेदन-धर्मा'चेतन है/पीयूष का केतन है।
करुणा की कर्णिका से/अविरल झरती है/समता की सौरभ-सुगन्ध ।” (पृ. ३९) इसीलिए वे करुणा को मोह का अंश नहीं, अपितु आंशिक मोह का ध्वंस मानते हैं।
लोकतन्त्र की रीढ़ बहुमत में नहीं है । लोकतन्त्र का नीड़ अल्पमत को भी उचित स्थान देने में है । लोकतन्त्र किसी विचार विशेष को अन्तिम सत्य मानने में नहीं, अन्य विचारों को भी उचित सम्मान देने में है। अनेकान्तवाद समीचीन दृष्टि है, वस्तु के अन्तरंग का स्पर्श करती है :
"लोक में लोकतन्त्र का नीड़/तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा।/'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं,/सद्विचार सदाचार के बीज
'भी' में हैं, 'ही' में नहीं।” (पृ. १७३) देश की एकता-अखण्डता को क्षति पहुँचाने के लिए राजनैतिक दल शतरंज की चाल चल कर दलदल पैदा कर रहे हैं । दल बहुलता शान्ति के लिए अभिशाप है :
"दल-बहुलता शान्ति की हननी है ना!/...तुच्छ स्वार्थसिद्धि के लिए
कुछ व्यर्थ की प्रसिद्धि के लिए/सब कुछ अनर्थ घट सकता है !" (पृ. १९७) धनतन्त्री गणतन्त्र में निरपराधी दण्डित हो रहे हैं, और अपराधी निःशंक घूम रहे हैं :
"प्राय: अपराधी-जन बच जाते/निरपराध ही पिट जाते, और उन्हें/पीटते-पीटते टूटतों हम।/इसे हम गणतन्त्र कैसे कहें ?
यह तो शुद्ध 'धनतन्त्र' है/या/मनमाना 'तन्त्र' है !" (पृ. २७१) दर्शन और अध्यात्म का अन्तर अत्यन्त स्पष्ट रूप से रेखांकित हुआ है :
"दर्शन का स्रोत मस्तक है,/स्वस्तिक से अंकित हृदय से
अध्यात्म का झरना झरता है।” (पृ. २८८) अध्यात्म सरोवर है तो दर्शन लहर है :