SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 371 अधिक गौरव प्राप्त हुआ है । 'मूकमाटी' के महाकाव्यत्व की प्रासंगिकता को लेकर प्रश्न उठ खड़ा होता है कि यह महाकाव्य है खण्डकाव्य ? भारतीय काव्य- शास्त्रियों ने रूपक का विवेचन करते हुए वस्तु, नेता और रस- इन तीन तत्त्वों की गिनती की है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रबन्ध काव्य के परीक्षण के लिए दो ही तत्त्वों का निरूपण किया हैइतिवृत्तात्मक और रसात्मक । यहाँ इन दोनों तत्त्वों का अर्थ क्रमशः वस्तु एवं रस योजना से ही है । अत: इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है कि प्रबन्ध का मुख्य तत्त्व वस्तु, नेता और रस मान्य है। प्रबन्धकाव्य में एक गतिशील सुव्यवस्थित कथानक अनिवार्य है । कथावस्तु के दो प्रकार माने गए हैंआधिकारिक और प्रासंगिक । आधिकारिक कथावस्तु प्रबन्ध काव्य के प्रधान पात्र की जीवन घटनाओं पर आधारित होती है । प्रासंगिक कथा में प्रधान पात्र के अतिरिक्त किसी अन्य पात्र का भी जीवन वृत्त संनिविष्ट रहता है। 'मूकमाटी' महाकाव्य की कथावस्तु प्रासंगिक कथा के अन्तर्गत इतिवृत्तात्मकता लिए हुए है । प्रासंगिक कथावस्तु में फल - सिद्धि नायक की अपेक्षा किसी अन्य को होती है। वह फल-सिद्धि नायक की अभीष्ट फलसिद्धि से भिन्न होती है किन्तु उसमें नायक का हितसाधन अवश्य होता है । रस काव्य का पोषक तत्त्व रहा है, किन्तु प्रस्तुत प्रबन्ध में नए रूप में रसों का परिपाक हुआ है। प्रायः प्रबन्ध काव्यों में शृंगार, वीर, करुण एवं शान्त रस में से एक प्रधान होता है तथा अन्य सहायक रूप में उपस्थित रहते हैं किन्तु 'मूकमाटी' में शान्त रस का ही परिपाक अथ से इति तक परिलक्षित होता है । 'मूकमाटी' में प्रतीकों यानी अप्रस्तुत विधान को नवीन जीवन के सन्दर्भों की व्याख्या हेतु उपयोग में लाया गया है। इस पद्धति की विशेषता यह होती है अनायास विचारों की मिलावट, शुष्कता एवं निरर्थक भावों को स्थान नहीं मिलता । यही मुख्य कारण है कि आचार्यश्री का स्व - प्रकाश एवं अन्त: दीप्ति काव्यबद्ध हुई है । इस प्रक्रिया में ब्रह्मानन्दानुभूति चाहे क्षणिक हो, पर होती अवश्य है, जो पाठक को वस्तु जगत् से विच्छिन्न कर ब्रह्मलोक से जोड़ देती है । 'मूकमाटी में यह कई स्थानों पर सशक्त हो उठी है। 'मूकमाटी' काव्य प्रतीकों के चलते बिम्ब-प्रधान हो गया है जो स्थूल यथार्थ से सूक्ष्म ऊर्ध्व यथार्थ की संरचना करता है । आलोच्य काव्य का शिल्प विधान एवं सौन्दर्य तत्त्व निरूपण आचार्य विद्यासागर की अप्रतिम सृजनात्मकता का परिचायक है। सम्पूर्ण कृति में रचनाधर्मिता के शैल्पिक प्रतिमान समृद्ध उदात्त गुणों से युक्त हैं। 'मूकमाटी' की भाषात्मक संरचना, बिम्ब योजना, प्रतीक विधान, उपमान योजना, शब्दालंकार एवं लयात्मकता आदि सभी शैल्पिक प्रतिमानों के विनियोजन में अद्वितीय रचना सामर्थ्य का दिग्दर्शन हुआ है। प्रकृति चित्रण की दृष्टि से आलोच्य प्रबन्ध में मानवीकरण एवं अन्य पद्धतियों के अतिरिक्त सचेतन स्वर पर प्रकृति की अदम्य शक्ति एवं नियन्ता के रूप में निरूपण उल्लेखनीय उपलब्धि ही मानी जाएगी। प्रबन्ध काव्य में नख - शिख वर्णन, षड्ऋतु तथा बारहमासा के स्थान पर जैन धर्म के आचार एवं योग साधनात्मक प्रक्रियाओं का उल्लेख करने की प्रवृत्ति सर्वथा श्लाघनीय है। युगद्रष्टा युगस्रष्टा आचार्य विद्यासागर ने जीव के अस्तित्व, कैवल्य साधना, अनेकान्तवाद में गुम्फित विराट् के सौन्दर्य बोध को उजागर करने में विलक्षण, विचक्षण, कारयित्री प्रतिभा का प्रभूत परिचय दिया है। समष्टि रूप में 'मूकमाटी' काव्य का शैल्पिक एवं सौन्दर्य-बोधात्मक रूप आध्यात्मिकता के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त सशक्त, समृद्ध एवं प्रभावोत्पादक बन पड़ा है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy