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370 :: मूकमाटी-मीमांसा
प्रकृति चित्रण में ही 'मूकमाटी' महाकाव्य की धड़कती चेतना निहित है । यहाँ मैं इसका उल्लेख कतिपय शब्दों में करना चाहूँगी क्योंकि यह अपने-आप में शोध का विशद विषय है। प्रकृति का विविधोन्मुखी चित्रण हुआ है : आलम्बन रूप : “सीमातीत शून्य में/नीलिमा बिछाई,
और "इधर "नीचे/निरी नीरवता छाई।" (पृ. १) उद्दीपन रूप : "अनगिन फूलों की/अनगिन मालायें
तैरती-तैरती/तट तक "आ/समर्पित हो रही हैं।" (पृ. २०) प्रतीकात्मक रूप : “न निशाकर है, न निशा/न दिवाकर है, न दिवा
अभी दिशायें भी अन्धी हैं।" (पृ. ३) मानवीकरण : “सरिता तट की माटी/अपना हृदय खोलती है
माँ धरती के सम्मुख !" (पृ. ४) नीति उपदेशक : "वही धारा यदि/नीम की जड़ों में जा मिलती/कटुता में ढलती है।" (पृ. ८) प्रकृति का -: "स्थूल है/रूपवती रूप-राशि है वह/पर पकड़ में नहीं आती। सुन्दर रूप छुवन से परे है वह/प्रभाकर को छोड़ कर/प्रभु के अनुरूप ही
सूक्ष्म स्पर्श से रीता/रूप हुआ है किसका ?/"धूप का।" (पृ. ७९) प्रकृति का - :- "कभी कराल काला राहू/प्रभा-पुंज भानु को भी कुरूप रूप पूरा निगलता हुआ दिखा,/कभी-कभार भानु भी वह
अनल उगलता हुआ दिखा।" (पृ. १८२) प्रकृति के आलम्बन रूप में नाम गणन प्रणाली :
"काक-कोकिल-कपोतों में/चील-चिड़िया-चातक-चित में बाघ-भेड़-बाज-बकों में/सारंग-कुरंग-सिंह-अंग में
खग-खरगोशों-खरों-खलों में/ललित-ललाम-लजील-लताओं में।" (पृ.२४०) प्रतीक रूप : "धरती को शीतलता का लोभ दे/इसे लूटा है,/इसीलिए आज
यह धरती धरा रह गई/न ही वसुंधरा रही न वसुधा !/और वह जल रत्नाकर बना है-/बहा-बहा कर/धरती के वैभव को ले गया है।"
(पृ. १८९) किसी भी काव्य की रचना युग जीवन के परिवेश से निरपेक्ष होकर सम्भव नहीं है। कवि को समाज से आधार ग्रहण करना ही पड़ता है । तात्कालिक राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक, शैक्षणिक परिस्थितियों के अनुसार कुछ अंश स्वीकार कर लिए जाते हैं। समाज और काव्य के इस अन्योन्याश्रित घनिष्ठता के कारण प्रत्येक कवि को अपने समय की नवीन उपज ही मानना चाहिए तथा माना जाता भी है । परम्परा और प्रयोग के परिप्रेक्ष्य में 'मूकमाटी' महाकाव्य में वर्तमान परिस्थितियों के तथा युग की बौद्धिकता के अनुरूप कथावस्तु का संयोजन किया गया है। कहीं घटित घटना है तो कहीं नीति, उपदेशों के माध्यम से आध्यात्मिकता का सम्प्रेषण हुआ है।
पौराणिक, ऐतिहासिक पात्रों की अपेक्षा युगानुकूल सामाजिक परिवेश के अनुरूप चरित्र का मनोवैज्ञानिक चित्रांकन किया गया है। समाज के निर्माण में नारी के महत्त्व का उल्लेख भी बड़ी खूबी से हुआ है। नारी को पूर्वापक्षा