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________________ 340 :: मूकमाटी-मीमांसा यह कोई नियम नहीं है।/ ऐसी स्थिति में प्रायः / मिथ्या निर्णय लेकर ही अपने आप को प्रमाण की कोटि में/ स्वीकारना होता है" सो अग्नि के जीवन में सम्भव नहीं है।" (पृ. २७६) जड़ की जड़ता का स्वरूप विलक्षण होता है। उसकी पहचान कराने कवि ने 'समयसार' ग्रन्थ की शैली अपनाई “जहाँ तक इन्द्रियों की बात है / उन्हें भूख लगती नहीं, / बाहर से लगता है कि उन्हें भूख लगती है । / रसना कब रस चाहती है, / नासा गन्ध को याद नहीं करती, स्पर्श की प्रतीक्षा स्पर्शा कब करती ? / स्वर के अभाव में ज्वर कब चढ़ता है श्रवणा को ?/ बहरी श्रवणा भी जीती मिलती है । आँखें कब आरती उतारती हैं/रूप की स्वरूप की ?/ ये सारी इन्द्रियाँ जड़ हैं, जड़ का उपादान जड़ ही होता है, / जड़ में कोई चाह नहीं होती जड़ की कोई राह नहीं होती / सदा सर्वत्र सब समान अन्धकार हो या ज्योति ।” (पृ. ३२८-३२९) राग-विराग विधि का निदर्शन भी कवि की प्रतिभा का द्योतक है : "गगन का प्यार कभी / धरा से हो नहीं सकता / मदन का प्यार कभी जरा से हो नहीं सकता; / यह भी एक नियोग है कि / सुजन का प्यार कभी सुरासे हो नहीं सकता // विधवा को अंग-राग / सुहाता नहीं कभी सधवा को संग-त्याग / सुहाता नहीं कभी, संसार से विपरीत रीत / विरलों की ही होती है भगवाँ को रंग-दाग/सुहाता नहीं कभी !” (पृ. ३५३-३५४) औषधि, जो जन्म-जरा-मृत्यु रोगहारी हो, उसका रहस्य प्रस्तुत करने में कवि ने सम्भवतः अपने अनुभव से शकार-त्रय रूप दिग्दर्शित किया है : " तात्कालिक / तन-विषयक- रोग ही क्या, / चिरन्तन चेतन - गत रोग भी / जो जनन-जरन-मरण रूप है / नव-दो- ग्यारह हो जाता है पल में/श, स, ष ये तीन बीजाक्षर हैं/ इन से ही फूलता - फलता है वह आरोग्य का विशाल-काय वृक्ष ! / इनके उच्चारण के समय / पूरी शक्ति लगा कर श्वास को भीतर ग्रहण करना है / और / नासिका से निकालना है ओंकार- ध्वनि के रूप में ।” (पृ. ३९७ - ३९८ ) आतंकवाद का चिर प्रतिष्ठित रूप निम्नलिखित पंक्तियों में निरूपित किया गया है : " पुनरावृत्ति आतंक की - / वही रंग है वही ढंग है / अंग-अंग में वही व्यंग्य है,
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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