________________
लेती है :
" और यह भी देख ! / कितना खुला विषय है कि / उजली-उजली जल की धारा बादलों से झरती है/ धरा- धूल में आ धूमिल हो / दल-दल में बदल जाती है। वही धारा यदि / नीम की जड़ों में जा मिलती / कटुता में ढलती है; सागर में जा गिरती / लवणाकर कहलाती है/ वही धारा, बेटा ! विषधर मुख में जा / विष-हाला में ढलती है; / सागरीय शुक्तिका में गिरती, यदि स्वाति का काल हो,/ मुक्तिका बन कर / झिलमिलाती बेटा, वही जलीय सता .!" (पृ. ८)
फिसलन होने पर अभय दिलाने वाली पंक्तियाँ ये हैं :
मूकमाटी-मीमांसा : : 337
" भले ही वह / आस्था हो स्थायी / हो दृढ़ा, दृढ़तरा भी / तथापि प्राथमिक दशा में / साधना के क्षेत्र में / स्खलन की सम्भावना पूरी बनी रहती है, बेटा ! / स्वस्थ - प्रौढ पुरुष भी क्यों न हो काई-लगे पाषाण पर/पद फिसलता ही है !" (पृ. ११ )
संप्रेषण आज के युग में अत्यधिक महत्त्व को प्राप्त हुआ है, जिसकी परिभाषा कवि ने इस प्रकार दी है :
“विचारों के ऐक्य से / आचारों के साम्य से / सम्प्रेषण में / निखार आता है, वरना / विकार आता है ! / बिना बिखराव / उपयोग की धारा का
दृढ़-तटों से संयत,/ सरकन-शीला सरिता-सी / लक्ष्य की ओर बढ़ना ही सम्प्रेषण का सही स्वरूप है।" (पृ. २२)
शिल्पी के कार्य (चाहे वह ताजमहल ही क्यों न हो) की पुनीत महत्ता को कौन अमान्य करेगा ? :
" सरकार उससे / कर नहीं माँगती / क्योंकि / इस शिल्प के कारण चोरी के दोष से वह / सदा मुक्त रहता है ।/ अर्थ का अपव्यय तो बहुत दूर / अर्थ का व्यय भी / यह शिल्प करता नहीं, / बिना अर्थ शिल्पी को यह/ अर्थवान् बना देता है; / युग के आदि से आज तक इसने / अपनी संस्कृति को / विकृत नहीं बनाया / बिना दाग है यह शिल्प और कुशल है यह शिल्पी । ” (पृ. २७-२८)
शिल्पी की योगशाला, प्रयोगशाला पर एक टिप्पणी यह है :
"यहाँ पर / जीवन का 'निर्वाह' नहीं / 'निर्माण' होता है इतिहास साक्षी है इस बात का । / अधोमुखी जीवन ऊर्ध्वमुखी हो / उन्नत बनता है; / हारा हुआ भी बेसहारा जीवन / सहारा देनेवाला बनता है ।" (पृ. ४३)