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________________ 332 :: मूकमाटी-मीमांसा कविता का भाव और काव्य की लक्ष्य-पूजा कवि ने तो वैसे भी बाँधी नहीं ही है। उनका सारा ध्यान कुम्भ के जीवन विकास की कहानी के माध्यम से मृण्मय का चिन्मय की यात्रा पर चल पड़ने का अद्भुत संकेत कराना है। अपनी तराशी हुई लेखनी के माध्यम से अनगिनत उदाहरणों, दृष्टान्तों, काव्य संकेतों, अलंकारों के माध्यम से उन्होंने अपनी बात को पुष्पित-पल्लवित किया है । उपरोक्त उद्धरण कविता के रसिक प्रेमियों के लिए भी उपादेय हैं, मननीय हैं। मुनिवरजी की क़लम जिस सत्य का सात्त्विक अनुसन्धान कर रही है उसे शब्दों में बाँधना आसान काम नहीं है। अन्ततोगत्वा शब्दों पर विश्वास लाने से ही मंज़िल पर विश्वास को अनुभूति मिलेगी। तब अस्तित्व की तमाम दिशाएँ अनस्तित्व के गहनाकाश में विलीन हो जाएँगी । मंगलमय वातावरण चहुँ ओर छा जाएगा और तब जागेगी प्रार्थना, जो मूक ओठों में नवजागरण का सन्देश जगाएगी, वैश्विक सत्य की साधना में लीन रहेगी और 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' का महाप्रसाद परमकृपालु प्रभु से माँगेगी । यह दिव्य चैतन्य बोध ही कवि का अन्तस्तल है जो अपार करुणा से झिलमिल करता है । कवि की मंगल कामना के शब्द हैं : “यहाँ सब का सदा/जीवन बने मंगलमय/छा जावे सुख-छाँव, सबके सब टलें-/अमंगल-भाव,/सब की जीवन लता हरित-भरित विहँसित हो/गुण के फूल विलसित हों नाशा की आशा मिटे/आमूल महक उठे/"बस !" (पृ. ४७८) पृष्ठ ३५५ यह लेखनी भी.... हमारी भी यही भावना है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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