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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 321 "मुख से बाहर निकली है रसना /...भौतिक जीवन में रस ना!" (पृ. १८०) उक्त छन्द में 'रसना' का अर्थ जिह्वा है और 'रस ना' का अर्थ आनन्दाभाव है। इसी प्रकार "स्व-पन "स्वपन 'स्व-पन ...'' (पृ. १८६) में पहले 'स्व-पन' का अर्थ अपनापन है । दूसरे 'स्वप न' का अर्थ सोना नहीं अर्थात् जागना है। तीसरे स्वप्न का अर्थ सोने में बड़बड़ाना है। "हमें नाग और नागिन/ना गिन, हे वरभागिन् !" (पृ. ४३२) 'नागिन' बद्ध संक्रमण तथा 'ना गिन' मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा अर्थभेदक है। द्वित्व (द्वित्त) ध्वनि प्रयोग द्वारा भी 'मूकमाटी' में बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा अभिनव अर्थों की सर्जना की गई है। एक ही ध्वनि का दोहरा प्रयोग द्वित्व (द्वित्त) कहलाता है। रचनाकार ने एक ही मूल शब्द की मध्यवर्ती अथवा दो स्वरों के बीच की ध्वनियों के द्वित्वीकरण द्वारा बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया को प्रशस्त किया है। निम्नलिखित उदाहरणों में यह प्रक्रिया द्रष्टव्य है : "राजसत्ता वह राजसता की/रानी-राजधानी बनेगी !'' (पृ. १०४) उक्त छन्द में राजसता'शब्द रजोगुण के भाव का बोधक है। इसमें विलास, मादकता तथा विखण्डन की प्रक्रिया निहित है। द्वित्तीकरण की प्रक्रिया से व्युत्पन्न ‘राजसत्ता' शब्द राजनैतिक प्रभुत्व का परिचायक है । रचनाकार का अभिमत है कि राजसत्ता राजसता के विभाजन तथा विखण्डन की जननी है। "मानवत्ता से घिर जाता है/मानवता से गिर जाता है।" (पृ. ११४) 'मानवता' शब्द 'मानव' जातिबोधक संज्ञा में 'ता' प्रत्यय लगाने से व्युत्पन्न हुआ है। इसकी 'त' ध्वनि को द्वित्व (द्वित्त) करने से मानवत्ता' शब्द व्युत्पन्न हुआ। 'मानवत्ता' में 'मान' शब्द मूल है । मानवत्ता का अर्थ है सम्मान या मान प्राप्ति की भावना। रचनाकार का कहना है कि सम्मान या प्रतिष्ठा प्राप्ति की भावना व्यक्ति को मानवीय मूल्यों से गिरा देती है। ___ संयुक्त ध्वनि प्रयोग द्वारा भी 'मूकमाटी' रचना में बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा अभिनव अर्थों की सृष्टि हुई है । दो पृथक् ध्वनियों का सहप्रयोग संयुक्तता कहलाती है। उदाहरण द्रष्टव्य है : "कम बलवाले ही/कम्बलवाले होते हैं।” (पृ. ९२) छन्द के दूसरे शब्द में 'म' तथा 'ब' ध्वनियों को संयुक्त बना दिया गया है। कम बलवाले' शब्द मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया का बोधक है। ‘कम्बल वाले' शब्द बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया का परिचायक है । दोनों पृथक्-पृथक् अर्थ के परिचायक हैं। रचनाकार का मत है कि शक्तिहीन लोग ही बाह्य आवरणों, उपादानों तथा आधारों का आश्रय लेते हैं। कहीं-कहीं एकल शब्दों की पुनरावृत्ति से भी अभिनव अर्थों की सर्जना हुई है । एक ही शब्द दो बार प्रयुक्त होकर व्युत्पत्ति स्तर पर अलग-अलग शब्द-मूलों से सम्बद्ध होने के कारण अभिनव अर्थों को व्यक्त करता है। निम्नलिखित उदाहरणों से इस प्रक्रिया को समझा जा सकता है : "बात करता वात है।" (पृ. ९०) प्रथम 'बात' शब्द वार्ता शब्द से व्युत्पन्न है तथा दूसरा 'वात' शब्द 'वो' या 'वा' (वह्) शब्दमूल से व्युत्पन्न है। वायु में
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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