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________________ 322 :: मूकमाटी-मीमांसा भी 'वा' शब्द मूल है। 'पवन' में 'पो' शब्द मूल है । वो-पो एकार्थी हैं। "कर पर कर दो।" (पृ. १७४) पहले 'कर' का अर्थ हाथ है तथा दूसरे 'कर' का अर्थ टैक्स है। "क्या वह परस का परस चाहेगा?" (पृ. १३९) प्रथम ‘परस' शब्द 'पारस' शब्द से सम्बद्ध है। दूसरा परस' स्पर्श शब्द से व्युत्पन्न है । उक्त प्रकार के शब्दों की रचना समध्वनिक प्रक्रिया से सम्बद्ध है । व्युत्पत्ति प्रक्रिया की दृष्टि से उक्त प्रकार के समस्वनिक शब्द अलग-अलग स्रोतों से सम्बद्ध हैं। रचनाकार ने रचनागत कथ्य-संवेदना को सम्प्रेषित तथा अभिव्यंजित करने के लिए शब्द-निर्माण की उक्त प्रक्रिया को अपनाया है। __ कहीं-कहीं रचनाकार ने शब्दगत स्वर ध्वनियों को परिवर्तित करके तथा अनुनासिकता के माध्यम से भी बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया को प्रशस्त किया है । इस प्रक्रिया से भी एक ही शब्द के दो रूप अलग-अलग अर्थों को अभिव्यंजित करते हैं, । यथा : “मही माँ ! कहाँ गई/ओ वसन्त की महिमा ! कहाँ गई ?" (पृ. १७७) 'मही माँ' तथा 'महिमा' ध्वनि तथा अनुनासिकता के स्तर पर अलग-अलग हैं। पहले का अर्थ पृथ्वी माँ है तथा दूसरे का अर्थ महिमा (गौरव) आदि से है। "पाँव नता से मिलता है/पावनता से खिलता है।" (पृ. ११४) 'पावनता' शब्द 'पावन' शब्द में 'ता' प्रत्यय जोड़ने से व्युत्पन्न हुआ है । 'पाँव नता' अनुनासिकता के कारण पृथक् अर्थ की बोधक बन गई है। 'पाँव नता' का अर्थ है पैरों का झुकना। व्युत्पन्न शब्द के प्रयोग द्वारा भी बद्ध तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा एक ही शब्द के दो रूपों से अभिनव अर्थों की अभिव्यंजना हुई है । मूल शब्द के पहले तथा अन्त में प्रत्यय जोड़कर यौगिक शब्दों की रचना की जाती है । 'मूकमाटी' काव्यकृति में रचनाकार ने व्युत्पन्न शब्दों के प्रयोगों द्वारा भी अभिनव अर्थों को व्यक्त तथा स्पष्ट किया है, यथा : "संयम के बिना आदमी नहीं/यानी/आदमी वही है जो यथा-योग्य/सही आदमी है ।" (पृ. ६४) ऊपर के छन्द में रचनाकार ने 'आदमी' शब्द को 'आ+दम+ई' = 'आदमी' प्रक्रिया से व्युत्पन्न माना है। 'दमी' का अर्थ है इन्द्रियों को नियन्त्रित करने वाला अर्थात् संयमी। 'आ' पूर्व प्रत्यय है। 'आ' का अर्थ है पूरी तरह से या समग्र रूप से। इस प्रकार आदमी शब्द का अर्थ हुआ समग्र रूप से संयमी। "जो वीर नहीं हैं, अवीर हैं/उन पर क्या, उनकी तस्वीर पर भी अबीर छिटकाया नहीं जाता !" (पृ. १३२) पहला 'अवीर' शब्द 'वीर' शब्द मूल में 'अ' पूर्व प्रत्यय लगाने से व्युत्पन्न हुआ है । अवीर का अर्थ है जो वीर नहीं है अर्थात् भीरु या कायर । दूसरा 'अवीर' शब्द सुगन्धित पदार्थ के लिए प्रयुक्त हुआ है । रचनाकार भीरु तथा कायरों को सम्मानित
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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