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________________ 320 :: मूकमाटी-मीमांसा "मैं अंगना हूँ/परन्तु,/मात्र अंग ना हूँ।" (पृ. २०७) 'अंगना' बद्ध संक्रमण की स्थिति में स्त्रीबोधक है परन्तु इसके अन्त के 'ना' अक्षर को पृथक् कर देने पर मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया में यह अंग ना' अर्थात् 'शरीर नहीं, इस पृथक् अर्थ का बोधक बन गया है। रचनाकार ने नारी को भोग्या नहीं माना है। नारी भारतीय संस्कृति के नैतिक तथा उदात्त मूल्यों की वाहिका है। यह अर्थ अंगना-अंग ना शब्द की रचना-प्रक्रिया से प्रतिध्वनित होता है। "न' -'मन' हो, तब कहीं/ 'नमन' हो समण को।” (पृ. ९७) 'नमन' शब्द नम् (नमस्कार) धातु से अन् प्रत्यय द्वारा व्युत्पन्न हुआ है। 'न मन' शब्द 'नमन' शब्द की प्रथम व्यंजन ध्वनि को पृथक् करके मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा व्युत्पन्न हुआ है। 'न मन' का अर्थ है मन नहीं, परन्तु ऊपर की पंक्ति में 'न मन' का अर्थ है चंचलता का अभाव अर्थात् स्थिरता । मन की एकाग्रता ही श्रमण के नमन का आधार है। "माटी के कुम्भ में भरे पायस ने/पात्र-दान से पा यश उपशम-भाव में कहा, कि/तुम में पायस ना है तुम्हारा पाय सना है ।" (पृ. ३६४) छन्द की प्रथम पंक्ति में 'पायस' का अर्थ जल है। संस्कृत के पयस्' शब्द मूल से पायस (जल) शब्द व्युत्पन्न हुआ है। दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त 'पा यश' वाक्य 'पायस' शब्द के प्रथम अक्षर 'पा' को पृथक् करके मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा व्युत्पन्न हुआ है। ‘पा यश' का अर्थ है यश प्राप्त करो। चौथी पंक्ति में प्रयुक्त पायस ना' शब्द में 'ना' अक्षर जोड़ कर मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा व्युत्पन्न हुआ है । 'पायस ना' का अर्थ हुआ अपवित्रता । अन्तिम पंक्ति में प्रयुक्त पाय सना' भी 'पायस' शब्द की अन्तिम व्यंजन ध्वनि 'स' को 'ना' के साथ सम्बद्ध करके मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा व्युत्पन्न हुआ है। ‘पाय सना' का अर्थ है पैर सना हुआ है । इस प्रकार रचनाकार ने एक ही शब्द से मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा एकाधिक शब्द-रूपों की रचना करके पृथक्-पृथक् अभिनव अर्थों को अभिव्यंजित किया है। "जीवन का, न यापन ही/नयापन है/और/नयापन !"(पृ. ३८१) छन्द की दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त 'नयापन' शब्द 'नया' विशेषण शब्द में 'पन' प्रत्यय जोड़कर व्युत्पन्न हुआ है। यह भाववाचक संज्ञा है । 'नयापन' संज्ञा शब्द की आरम्भिक व्यंजन ध्वनि को मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा विच्छिन्न करके 'न यापन' शब्द व्युत्पन्न हुआ । 'न यापन' का अर्थ हुआ गुज़ारा न करना। 'नयापन' शब्द की रचना 'यापन' शब्द मूल में 'नै' आदि अक्षर का प्रयोग करने से मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा हुई है। नैयापन का अर्थ हुआ नौका का भाव अर्थात् मुक्ति । रचनाकार का उक्त शब्दों की रचना-प्रक्रिया से अभिप्राय है कि जीवन के प्रति निस्संगता का भाव ही जीवन की नवीनता तथा मुक्ति का सोपान है । __“हम हैं कृपाण/हम में कृपा न !" (पृ. ७३) ‘कृपाण' शब्द बद्ध संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा व्युत्पन्न अस्त्र विशेष का परिचायक है। 'ण' ध्वनि को वर्त्य 'न' में बदलने पर तथा मुक्त संक्रमण की प्रक्रिया द्वारा पृथक् लिखने पर कृपा न' शब्द की रचना हुई। कृपा न' का अर्थ हुआ दया अथवा करुणा-शून्य । कृपाण दयाशून्य होती है । हिंसा में करुणा, मानवीय भाव नहीं है । यह रचनाकार का अभिप्रेत है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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